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Tuesday, 3 March 2020

उम्र


उम्र के पेड़ से
निःशब्द
टूटती पत्तियों की
सरहराहट,
शिथिल पलों में
सुनाई पड़ती है,
मौन एकांत में
समय की खुली
संदूकची से निकली
सूखी स्मृतियों की
कच्ची गंध 
अनायास
हरी हो जाती है

ख़्वाबों की
मोटी किताब में
धुंधली पड़ती
नींद की स्याही से,
जीवन के बही-खातों का
हिसाब लिख,
उम्र सारे कर्ज़
 सूद समेत
 दोहराती है।

सूर्योदय से सूर्यास्त तक
अनदेखे पलों की
रहस्यमयी नक्काशी को
टटोलने की उत्सुकता में,
उम्र ढोती है पीठपर,
चाहे-अनचाहे,
जीवन के बेढ़ब
घट का भार,
साँसों के थककर
समय के समुंदर की
गुमनाम
लहर बन जाने तक।

बँधे गट्ठर से जीवन के
एक-एक कर फिसलती
उम्र की लुआठी
 बची लकड़ियाँ 
कौन जाने किस पल
काल की घाटी में
राख बन उड़ जायेंगी!!!

#श्वेता सिन्हा


22 comments:

  1. वाह श्वेता ! हम सूखे हुए पत्तों पर तुमने इतनी सुन्दर कविता लिख दी.
    तुम्हारी कविता पढ़ कर पन्त जी की कविता याद आ गई -
    'द्रुत झरो जगत के जीर्ण पत्र !'

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    1. बहुत आभारी हूँ सर।
      सादर।

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  2. हर छंद में अतुल्य बिम्ब का सृजन ... इनमें सर्वोपरि छंद .. सृष्टि के कटु पर .. अटल सत्य को बिम्बित करती ..प्रकृति के लिबास में जीवन-दर्शन .. मन को छूती, प्रकृति से रूबरु कराती और अंत में मन को उदास भी करती ..
    "बँधे गट्ठर से जीवन के
    एक-एक कर फिसलती
    उम्र की लुआठी
    बची लकड़ियाँ
    कौन जाने किस पल
    काल की घाटी में
    राख बन उड़ जायेंगी!!!"
    ... बेहतरीन ...

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    1. आपकी निश्छल सराहना के लिए बहुत शुक्रिया।
      सादर आभार।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 03 मार्च 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    Replies
    1. सदैव आभारी हूँ दी।
      सादर।

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  4. आज आपके जीवन के शाख़ से आयु की एक और पत्ती झड़ गई ... आम भाषा में कहूँ तो - आपको जन्मदिन की हार्दिक बधाई ... पर मन से कहूँ तो उदासी भी कि हम .. आप .. अपनी आखिरी "हमक़दम" के और करीब होते जा रहे ... ना जाने कौन सा पल.. ये बातें लगती कटु जरूर है, लोग कतराते हैं ऐसी बातों को करने से .. पर ये कटु सत्य है तो अटल ... खैर ! फिलहाल जमशेदपुर में जमशेद जी के जन्मदिन के साथ ख़ुशी मनाइए .. निकल जाइए शहर में .. आज तो दुल्हन की तरह सजा है आपका शहर ... मानो आपके जन्मदिन की खुशियों में वो भी शरीक है ....
    अतुल्य रचनाओं को रचने के लिए लम्बी आयु की असीम शुभकामनाएं ...☺

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  5. सूर्योदय से सूर्यास्त तक
    अनदेखे पलों की
    रहस्यमयी नक्काशी को
    टटोलने की उत्सुकता में,
    उम्र ढोती है पीठपर,
    चाहे-अनचाहे,
    जीवन के बेढ़ब
    घट का भार,
    साँसों के थककर
    समय के समुंदर की
    गुमनाम
    लहर बन जाने तक।
    शानदार बिम्ब और अद्भुत शब्दविन्यास से सजी लाजवाब कृति श्वेता जी !
    जन्मदिन की अनन्त शुभकामनाएं आपको।

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  6. सार्थक सृजन जिसमें जीवन सफ़र में घटित सापेक्ष-निरपेक्ष घटनाओं के साथ जीवन की वास्तविकता को उजागर किया गया है. जीवन दर्शन की उत्कृष्ट अभिव्यक्ति करती आपकी रचना बार-बार पढ़ने योग्य है आदरणीया श्वेता दीदी.
    बधाई एवं ढेर सारी शुभकामनाएँ. आपकी लेखनी को नमन.

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  7. जन्मदिन दिन की बहुत-बहुत शुभकामनाएं प्रिय श्वेता 💐💐💐💐💐💐 खूब लिखो ...ईश्वर से यही कामना । सदा मुस्कुराती रहो ।बहुत ही खूबसूरत रचना ।

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  8. प्रिय श्वेता, जन्मदिन का एक रूप यह भी है !
    उम्र के पेड़ से
    निःशब्द
    टूटती पत्तियों की
    सरहराहट,
    शिथिल पलों में
    सुनाई पड़ती है।
    बहुत बहुत शुभकामनाएँ। बहुत बहुत बधाई।

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  9. जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं, श्वेता दी। आप इसी तरह लिखती रहे यही शुभकामनाएं।

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  10. बेहतरीन व लाजवाब रचना ,सदैव की तरह अनूठी भावाभिव्यक्ति।जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और बहुत बहुत बधाई श्वेता💐💐

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  11. सबसे पहले जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई प्रिय श्वेता | सपरिवार सकुशल , सलामत रहो , मेरी यही दुआ है |
    जीवन की नश्वरता के दर्शन को बखूबी समेटती रचना के लिए बधाई || खासकर ये पंक्तियाँ जीवन के प्रति नैराश्य भाव को उजागर करती हैं ---
    बँधे गट्ठर से जीवन के
    एक-एक कर फिसलती
    उम्र की लुआठी
    बची लकड़ियाँ
    कौन जाने किस पल
    काल की घाटी में
    राख बन उड़ जायेंगी!!!
    भले जीवन का अंत निश्चित हो पर आगे अनिश्चित भविष्य के प्रति अगर हम उम्मीद की भावना नहीं रखेंगे तो वर्तमान भी बोझिल हो जाएगा | आखिर पेड़ से झरते पत्ते भी यही कहते हैं जीर्ण- शीर्ण पत्तों पर नहीं --नवल कोंपलों पर दृष्टि रखो | ये ही पतझड़ के बाद बसंत की आहट देती हैं | सस्नेह |

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  12. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर( 'लोकतंत्र संवाद' मंच साहित्यिक पुस्तक-पुरस्कार योजना भाग-१ हेतु नामित की गयी है। )

    'बुधवार' ०४ मार्च २०२० को साप्ताहिक 'बुधवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/


    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'बुधवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।


    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  13. काफ़ी दिनों बात आपकी कलम से पुरानी टोन देखने को मिली है। अद्भुत लेखनी के धनी हो आप।
    पल, दिन या साल सब अपनी गति से बीत रहे हैं... इसी गति में हमे उम्र का हमारे कर्म के साथ सामंजस्य बिठाना पड़ता है।
    ख्वाबों के लिए हमने क्या किया और क्या खोया इसका हिसाब हमारी आंखों के सामने से गुजरता ही है।
    भविष्य किसने जाना है।
    बहुत खूबसूरत रचना।
    साहित्य के संसार में अव्वल रहो, यही कामना है।

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  14. प्रिय श्वेता जी ,सबसे पहले तो देर से आने के लिए क्षमा चाहती हूँ , आपको जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं ,आपकी लेखनी यूँ ही चलती रहें यही कामना करती हूँ।

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  15. क्षमा करिएगा आदरणीया दीदी जी बड़ी देर से आए हम। जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएँ और बधाई आपको और साथ में आपके लिये ढेर सारा आदर और प्यार। माँ शारदे की आप पर सदा कृपा बनी रहे और श्री नारायण और नारायणी आपको स्वस्थ और आनंदमय रखे और आप पर खूब आशीष लुटाए यही कामना है।

    आपकी कलम के तो हम वैसे ही कदरदान हैं। इस नश्वर जीवन पर भी आपकी कलम क्या खूब चली। बहीखाते में हिसाब लिखते इस जीवन पर आपकी यह अभिव्यक्ति अंतर तक पहुँची। सादर प्रणाम आपको और आपकी कलम को 🙏

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  16. टूटती पत्तियों की
    सरहराहट,
    शिथिल पलों में
    सुनाई पड़ती है।
    बहुत बहुत शुभकामनाएँ
    देर से आने के लिए माफ़ी चाहूंगा जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनाएं

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  17. जीवन के शाश्र्वत पलों का खाका खींच दिया प्रिय श्वैता आपने सच यूं ही निशब्द काल की गति सब कुछ अपने में समा लेती है ,घुमती पृथा सी नीरव, पर जिसका स्वर कमी रूप में गूंजता भी है पत्तों की सरसराहट सा या विध्वंस सा ।
    बहुत गहन अभिनव सृजन।
    सस्नेह

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  18. कमी को , कयी पढ़े।

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  19. राख तो सभी को होना है ... समय के लम्हे टूटेंगे उम्र से लगातार बे आवाज़ पर इन सब को जी लेना ही जीवन है ...
    बहुत सुंदर भावों से सही साक्षात सच के क़रीब रचना ...

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।