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Sunday, 14 June 2020

शोक गीत


चेतना के बंद कपाट के पार,
मनमुताबिक न मिल पाने की
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षिप्त,
भरभरायी उम्मीद घूरती है।

अप्राप्य इच्छाओं के कोलाज
आँसुओं में भीगकर गलते है,
जीवन की धार भोथड़ होकर,
संघर्ष का गला रेतती है।

प्रतिकूल जीवन के ढर्रे से विद्रोह
संवाद का कंठ अवरुद्ध करके,
भावनाओं की सुनामी का ज्वार
अनुभूतियों का सौंदर्य लीलती है।

मन के अंतर्द्वंद्व का विष पीकर
मुस्कान में घोंटकर श्वास वेदना,
टूटी देह, फूटे प्रारब्ध से लड़कर 
जीवन का मंत्र बुदबुदाती पीड़ा।

विजय और उम्मीद पताका लिए
स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते, 
साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।

©श्वेता सिन्हा
१४ जून २०२०

22 comments:

  1. अवसाद रोग है और अवसादग्र्स्त मनोरोगी। सृजन आक्रोश व्यक्त कर रहा है होना ही चाहिये।

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    1. जी सर,क्षोभ हो रहा है एक युवा प्रतिभा के ऐसे जाने पर।
      आपका आशीष मिला।
      आभारी हूँ सर।

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  2. विजय और उम्मीद पताका लिए
    स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते,
    साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
    कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।

    बीमारी को कायरतापूर्ण हरकत नहीं कह पा रही हूँ ना कोई शोक गीत के लिए ठहराव है..

    सोचती जरूर हूँ "ऐसे समय में कहाँ होते हैं तथाकथित अपने पराए समाज के लोग..।"

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    1. जी दी प्रणाम।

      बीमारी से जूझने की बजाय मृत्यु आसान मानने वालों के लिए प्रेरणा न बने कोई।
      असंख्य युवा जिससे प्रभावित हैं उसकी तरह हारकर मृत्यु का चुनाव न करे।
      जो हर पीड़ा स कर संघर्ष कर रहे हैं रात दिन विपरीत परिस्थितियों में जी रहे हैं उनसे प्रेरित होना है।
      ज़िंदगी से हारकर घुटने टेकना कायरता ही है। यही कहने की कोशिश है।

      बहुत बहुत आभारी हूँ दी आपका आशीष मिला।
      सादर।

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  3. मनुष्य की क्या मनस्थिति होती होगी उस वक्त यह अंदाजा लगाना मुश्किल है श्वेता ,मृत्यु का हरण करना कोई आसान बात नहीं ,इंसान को अपनी जान सबसे अधिक प्रिय होती है ....। बहरहाल एक उभरते कलाकार के इस तरह जाने से मन उदास है ।

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    1. जी दी मृत्यु का वरण आसान नहीं परंतु जीवन जीने की कठिनाइयों से भागना भी उचित नहीं न।
      आभारी हूँँ दी विमर्श के लिए।
      सस्नेह
      सादर।

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  4. लगता है सहित्यकार और बुद्धिजीवी जन किसी ना किसी दिन क्राइम ब्रांच वालों को नौकरी से वंचित कर के ही दम लेंगे .. शायद ... हर घटना पर उतावलापन में हम अपनी प्रतिक्रिया चिपका देते हैं। अभी जांच में पता भी नही चला होता है कि ये "आत्महत्या" है या "हत्या" , हम अपनी बात थोप देते हैं।
    "कठुआ काण्ड" के समय भी सारे सोशल मिडिया वालों ने उन चार लड़कों को कोस-कोस कर खूब हुआँ-हुआँ किया, पर जब महीनों बाद अपने अथक परिश्रम से जी (Zee) चैनल वालों ने उन बच्चों को निर्दोष साबित किया तो सारे सोशल मिडिया वालों को मानो साँप सूंघ गया। कहीं से चूं तक आवाज़ भी नहीं आई।
    इस तरह के किसी राष्ट्रीय स्तर की मार्मिक घटना पर त्वरित मंतव्य सोशल मिडिया पर व्यक्त करना एक प्रश्नवाचक चिन्ह भर नज़र आता है।
    ऐसा नहीं कि जो ऐसा नहीं करता वो मर्माहत नहीं होता है, बल्कि वो भी अंतर्मन तक मर्माहत होकर किंकर्तव्यविमूढ़ हो जाता है ... शायद ...

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    1. जी तार्किक महोदय सहमत हैं आपसे कि लोग हर घटना को लपकने की होड़ में रहते हो मानो।
      सुशांत कोई आम आदमी नहीं थे देश के असंख्य लोगों के प्रिय थे उनके ऐसे जाने पर अन्वेषण दृष्टि और विकलता स्वाभाविक है।
      फिर, हर घटना पर प्रतिक्रिया लिखना या न लिखना व्यक्तिगत पसंद या नापसंद है उसके लिए
      जो लिख रहे उन्हे कहना उचित तो नहीं शायद..।
      आपका बहुत शुक्रिया विमर्श के लिए।

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    1. आभारी हूँ...सर।
      सादर शुक्रिया।

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  6. विजय और उम्मीद पताका लिए
    स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते,
    साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
    कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।
    सही कहा आत्महत्या नितांत कायरतापूर्ण व्यवहार है
    अगर देखा जाय तो हमारा स्वयं पर इतना अधिकार कहाँ कि जो दिल में आये करें... ।स्वयं के होने से पहले हम कितनोंं के हैं। जिन्होंने जीने के लिए जीवन दिया जीवन खोने से पहले उनकी स्वीकृति ली क्या...? सचमें डर लगता है ऐसी घटनाओं से। इन फिल्मी हस्तियों से वैसे भी सभी जल्दी प्रेरित होते हैं....।
    बहुत सुन्दर सार्थक सृजन।

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    1. जी सुधा जी आपने सही समझा।
      बहुत आभारी हूँ मेरी रचना का मतंव्य समझने के लिए।
      जिनसे लोग प्रभावित है उनके नकारात्मक क़दम का समर्थन नहीं किया जाना चाहिए।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  7. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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    1. आभारी हूँ.प्रिय कामिनी जी।
      रचना को मान देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
      सस्नेह।
      सादर।

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    2. सादर नमस्कार ,

      आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-6-2020 ) को "साथ नहीं कुछ जाना"(चर्चा अंक-3734) पर भी होगी,

      आप भी सादर आमंत्रित हैं।

      ---

      लिंक खुलने में समस्या हुई इसकेलिए क्षमा चाहती हूँ ,मैंने अब सुधार कर दिया हैं।

      कामिनी सिन्हा



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  8. प्रिय श्वेता , भले आत्मघातियों के लिए कोई शोक गीत नहीं लिखा जाना चाहिए पर सुशांत की असमय मौत पर उनके परिवारजनों के लिए बहुत पीड़ा है | जो परिवार उनकी उपलब्धियों पर इतराता होगा , वो जीवन भर इस दर्द के साथ जीएगा | और सुशांत ने जीवन में यदि ये कदम मानसिक रोग के चलते उठाया है तो सभ्य समाज पर प्रश्न चिन्ह है उनकी मौत | आज समाज में बढती आत्महत्यायें एक विमर्श का मुद्दा होनी चाहिए | शौहरत और दौलत में दबे और पारिवारिक रूप से सुखी लोग कहाँ इतने अकेले हो जाते हैं कि उन्हें अपनी अनमोल जान की परवाह ही नहीं रहती |

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    1. जी दी प्रणाम।
      आपसे सहमत है हम आत्महत्या मानसिक परेशानी की वजह से किया जाता है उस पर विमर्श भी होना आवश्यक है किंतु जब पढ़े लिखे समझदार समाज के लोगों के लिए प्रेरक व्यक्तित्व ऐसे क़दम उठाते हैं तो उसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता ही है। जीवन से जूझने वाले का अभिनंदन किया जाना चाहिए।
      हर छोटी बात पर आज की पीढ़ी तनाव में आ जाती है उसके लिए सुशांत उदाहरण की तरह न प्रस्तुत हो मेरी रचना की मंशा मात्र इतनी ही है।
      जी दी,
      बहुत कम कलाकार मेरे प्रिय रहे है सुशांत उनमें एक थे उनके जाने पर मुझे अब तक यकीन नहीं परंतु उनके इस क़दम का किसी भी सूरत में समर्थन नहीं कर सकती।
      सादर आभार दी विमर्श के अवसर के लिए।
      सस्नेह शुक्रिया।

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  9. बेहद सार्थक रचना

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    1. आभारी हूँ लोकेश जी।
      सादर।

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  10. मार्मिक रचना ... 💐💐

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    1. आभारी हूँ आदरणीय।
      सादर।

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  11. परिस्थिति प्रतिकूल हो या अनुकूल मन के हारे हार मन के जीते जीत ... अब आगे सीखे लोग इस से

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।