१)
बिना जाने-सोचे उंगलियाँ उठा देते हैं लोग
बातों से बात की चिंगारियाँ उड़ा देते हैं लोग
अख़बार कोई पढ़ता नहीं चाय में डालकर
किसी के दर्द को सुर्खियाँ बना देते हैं लोग
२)
चलन से बाहर हो गयी चवन्नियों की तरह,
समान पर लिपटी बेरंग पन्नियों की तरह,
कुछ यादें ज़ेहन में फड़फड़ाती हैं अक्सर
हवाओं के इश्क़ में टूटी कन्नियों की तरह।
३)
किसी के शोख़ निगाहों से तकदीर नहीं बदलती
नाम लिख लेने से हाथों की लकीर नहीं बदलती
माना दुआओं में शामिल हो दिलोजान से हरपल,
दिली ज़ज़्बात से ज़िंदगी की तहरीर नहीं बदलती।
४)
कभी चेहरा तो कभी आईना बदलता है
सहूलियत से बात का मायना बदलता है
अज़ब है ये खेल मतलबी सियासत का
ख़ुदसरी में ज़ज़्बात का दायरा बदलता है
५)
मन पर चढ़ा छद्म आवरण भरमाओगे
मुखौटों की तह में क्या-क्या छिपाओगे?
एक दिन टूटेगा दर्पण विश्वास भरा जब
किर्चियों से घायल ख़ुद ही हो जाओगे
६)
शुक्र है ज़ुबां परिदों की अबूझ पहली है
वरना उनका भी आसमां बाँट आते हम
अगर उनकी दुनिया में दख़ल होता हमारा
जाति धर्म की ईंटों से सरहद पाट आते हम
७)
ज़िंदगी नीम तो कभी है स्वाद में करेला
समय की चाल में हर घड़ी नया झमेला
दुनिया की भीड़ में अपनों का हाथ थामे
चला जा रहा बेआवाज़,आदमी अकेला
८)
चाहा तो बहुत मनमुताबिक न जी सके
जरूरत की चादर की पैबंद भी न सी सके
साकी हम भरते रहे प्यालियाँ तमाम उम्र
ज़िंदगी को घूँटभर सुकून से न पी सके
#श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 अप्रैल 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ दी।
Deleteस्नेह है आपका।
लाजवाब लिखे हैं सारे मुक्तक ।
ReplyDeleteएक साथ कैसे गौर फरमाएं सब पर ? खैर पढ़ तो सब लिए ---
बिना जाने-सोचे उंगलियाँ उठा देते हैं लोग
बातों से बात की चिंगारियाँ उड़ा देते हैं लोग
अख़बार कोई पढ़ता नहीं चाय में डालकर
किसी के दर्द को सुर्खियाँ बना देते हैं लोग
&&&&&&&&&&&&&&&&&&&&
उँगलियाँ उठी तो तोड़ देंगे
चिंगारियों का रुख मोड़ देंगे
चाय में डाल कर कुछ पीते नहीं
बेकार की सुर्खियों को छोड़ देंगे ।
२)
चलन से बाहर हो गयी चवन्नियों की तरह,
समान पर लिपटी बेरंग पन्नियों की तरह,
कुछ यादें ज़ेहन में फड़फड़ाती हैं अक्सर
हवाओं के इश्क़ में टूटी कन्नियों की तरह।
@@@@@@@@@@@@@@@
यादें कब चलन से बाहर होती हैं
न टूटती हैं न बेरंग होती हैं
फड़फड़ाती हैं पूरे जोश औ खरोश से
खुले आसमाँ में पतंग की तरह उड़ती हैं ।
आज इतना ही ... बाकी फिर कभी ।
मुक्तकों को इतना मान देने के लिए बहुत आभारी हूँ दी।
Deleteआपकी विलक्षणता है
प्रतिउत्तर म़े लिखे आपके मुक्तकों ने रचना की शोभा बढ़ा दी है।
सस्नेह अभिनंदन दी।
सादर।
आपके सभी मुक्तक हृदयस्पर्शी अभिव्यक्तियों को समेटे हुए हैं श्वेता जी । अभिनंदन आपका ।
ReplyDeleteबहुत आभारी हूँ आदरणीय सर।
Deleteसादर।
गज़ब
ReplyDeleteआपका आशीष है दी।
Deleteसस्नेह शुक्रिया।
सादर।
दूसरा और छठा मुक्तक विशेष पसंद आया। माँ सरस्वती की कृपा के बिना ऐसी रचनाएँ संभव नहीं हैं। बधाई।
ReplyDeleteप्रिय दी ये सारे मुक्तक अलग अलग समय पर लिखे गये हैं इसे एक साथ करके रख दिए हैं।
Deleteआपका स्नेहिल आशीष मिला
मन उत्साह से भर गया।
सस्नेह शुक्रिया दी।
३)किसी के शोख़ निगाहों से तकदीर नहीं बदलती
ReplyDeleteनाम लिख लेने से हाथों की लकीर नहीं बदलती
माना दुआओं में शामिल हो दिलोजान से हरपल,
दिली ज़ज़्बात से ज़िंदगी की तहरीर नहीं बदलती।
@@@@@@@@@@@@@@@@@@
सुना है दुआओं में बड़ा असर होता है
तकदीर पर निगाहों का कहर होता है
खाली जज़्बातों से नहीं चलती ज़िन्दगी माना
यूँ बहुत कुछ हाथ की लकीरों में बसर होता है ।
________________________________________
४)कभी चेहरा तो कभी आईना बदलता है
सहूलियत से बात का मायना बदलता है
अज़ब है ये खेल मतलबी सियासत का
ख़ुदसरी में ज़ज़्बात का दायरा बदलता है
****************
आज कल आईने से ज्यादा चेहरा बदलता है
सहूलियत से बात ही नहीं रिश्ता तक बदलता है
सही समझा है तुमने इस मतलबी दुनिया को
अपनी जिद में इंसान दूसरों के जज़्बात नहीं समझता है .
जितनी बार पढ़ती हूँ कुछ सोच बन जाती है ... :) :)
अच्छा बस अब आगे नहीं ... नाराज़ न होना ...तुम्हारे मुक्तक की ऐसी कि तैसी कर दी है :) :)
वाह ! संगीता दी, आपने तो उलटबाँसियाँ रच दी हैं। श्वेता की रचना है ही ऐसी कि सोचने को मजबूर करे।
Deleteप्रिय श्वेता , सभी मुल्तक सार्थक और सारगर्भित , जो अपनी कहानी आप कहने में सक्षम हैं | कितना बड़ा मार्मिक सत्य लिखा तुमने --
Deleteशुक्र है ज़ुबां परिदों की अबूझ पहली है
वरना उनका भी आसमां बाँट आते हम
अगर उनकी दुनिया में दख़ल होता हमारा
जाति धर्म की ईंटों से सरहद पाट आते हम
ये कडवी हकीकत है------ यूँ तो मूक प्राणियों का आधा संसार इंसान हथिया चुका है पर फिर भी उनकी पूरी दुनिया हथियाने में सक्षम नहीं नहीं तो यही होता | सभी मुक्तक जीवन की विद्रूपताओं को सामने रखते हुए - सोचने को विवश करते हैं | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं भावपूर्ण और संवेदनाओं के मर्म को छूते सृजन के लिए |
बहुत खूब दीदी | इसे कहते हैं -- दो विद्वतजनों की कमाल जुगलबंदी | वाह !!!!-
Deleteअरे दी नाराज़गी किस बात की?
Deleteआपकी लिखी उलटबांसियाँ मेरे लिखे पर आपका दुलार है और आपका असीम आशीष है।
आपके स्नेह की आकांक्षा है और आपके लिखे का अभिनंदन है हमेशा।
बहुत शानदार लिखा है आपने प्रतिउत्तर में।
नस्नेह शुक्रिया दी।
स
प्रिय श्वेता , सभी मुक्तक सार्थक और सारगर्भित हैं , जो अपनी कहानी आप कहने में सक्षम हैं | कितना बड़ा मार्मिक सत्य लिखा तुमने --
ReplyDeleteशुक्र है ज़ुबां परिदों की अबूझ पहली है
वरना उनका भी आसमां बाँट आते हम
अगर उनकी दुनिया में दख़ल होता हमारा
जाति धर्म की ईंटों से सरहद पाट आते हम
ये कडवी हकीकत है------ यूँ तो मूक प्राणियों का आधा संसार इंसान हथिया चुका है पर फिर भी उनकी पूरी दुनिया हथियाने में सक्षम नहीं नहीं तो यही होता | सभी मुक्तक जीवन की विद्रूपताओं को सामने रखते हुए - सोचने को विवश करते हैं | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं भावपूर्ण और संवेदनाओं के मर्म को छूते सृजन के लिए |
अबूझ पहली- पहेली
ReplyDeleteप्रिय दी,
Deleteआपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रियाओं की प्रतीक्षा रहती है।
बहुत आभारी हूँ।
स्नेहिल शुक्रिया।
सादर।
आदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ। हर एक छंद यथार्थ -पूर्ण और सटीक। सदा की तरह मन को झकझोर कर सत्य हृदय तक पहुंचा देने वाली पंक्तियाँ। पढ़ कर आनंद आया।
आपकी इन मुक्तकों को पढ़ कर कुछ शायरी पढ़ने का सा आनंद और कुछ कबीर-दास जी के दोहे को पढ़ने की अनुभूति। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
आदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत सुंदर पंक्तियाँ। हर एक छंद यथार्थ -पूर्ण और सटीक। सदा की तरह मन को झकझोर कर सत्य हृदय तक पहुंचा देने वाली पंक्तियाँ। पढ़ कर आनंद आया।
आपकी इन मुक्तकों को पढ़ कर कुछ शायरी पढ़ने का सा आनंद और कुछ कबीर-दास जी के दोहे को पढ़ने की अनुभूति। हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम।
कल मायूस थी न छुटकी तुम
ReplyDeleteआज तो खुश हो न...
नीम भी है और करेला भी
इसी कड़ुवाहट का नाम ज़िंदगी है
समय तो समय ही है
चलता है कभी और ..
दौड़ भी जाता है कभी..
...
पकड़ में आए समय
तो तरीका विस्तार से
बतलाइएगा जरूर
सादर..
ज़िंदगी नीम तो कभी है स्वाद में करेला
ReplyDeleteसमय की चाल में हर घड़ी नया झमेला
दुनिया की भीड़ में अपनों का हाथ थामे
चला जा रहा बेआवाज़,आदमी अकेला
वाह!!!!
क्या कमाल के मुक्तक रचे हैं आपने श्वेता जी!
अगला पढ़कर फिर पिछला दुबारा पढ़ रही हूँ...बार बार पढकर भी मन नहीं भर रहा साथ ही आ. संगीता जी की लेखनी की कायल हूँ हर विधा में माहिर हैं...उनकी जुगलबंदी ने तो रचना पर चार चाँद लगा दियें हैं...।
बहुत ही लाजवाब संग्रहणीय सृजन।
मन पर चढ़ा छद्म आवरण भरमाओगे
ReplyDeleteमुखौटों की तह में क्या-क्या छिपाओगे?
एक दिन टूटेगा दर्पण विश्वास भरा जब
किर्चियों से घायल ख़ुद ही हो जाओगे ।
*********************
हर इंसान का कहाँ कोई चेहरा होता है
उस के पास मुखौटों पर मुखौटा होता है
एक उतरता है तो सोचते हैं कि ये असली है
पर वो भी चेहरे पर चढ़ा एक और मुखौटा होता है ।।
और लेना है आशीर्वाद ? 😆😆😆😆
प्रिय श्वेता जी,बहुत ही सुंदर,सारगर्भित और बहुत कुछ समझा गए आपके लाजवाब मुक्तक, कहां कहां से ढूंढ लाईं इतनी सुंदर पंक्तियां,एक एक शब्द खुशी दे रहे,कई बार पढ़ना पड़ा,ऊपर से संगीता दीदी की हाज़िर जवाबी के क्या कहने,आनंद ही आनंद,बहुत ही नायाब सृजन ।
ReplyDeleteकभी चेहरा तो कभी आईना बदलता है
ReplyDeleteसहूलियत से बात का मायना बदलता है
अज़ब है ये खेल मतलबी सियासत का
ख़ुदसरी में ज़ज़्बात का दायरा बदलता है----बहुत ही गहरी पंक्तियां हैं...वाह
बहुत ही बढ़िया जैसे अहसास के अनेक स्तरों को किसी ने चीर दिया हो और भीतर तक उतार दिया हो अर्थों को । बहुत ही प्रभावी । हार्दिक शुभकामनाएँ एवं बधाई ।
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर सराहनीय हैं सभी मुक्तक |
ReplyDeleteवाह वाह, बहुत खूब, महफ़िल ऐसे जमी हुई है मानो कोई काव्य गोष्टी चल रही हो, मजा आ गया, संगीता जी के आने से तो चार चाँद लग गये, छा गयी आप संगीता जी, लाजवाब मुक्तक श्वेता जी ढेरों बधाई हो आपको
ReplyDeleteवाह्ह्ह्ह्ह्ह!
ReplyDeleteआदरणीया दीदी जी वाह! कितने सच्चे हैं आपके यह सुंदर मुक्तक। यह सभी मुझे प्रिय हो गए। साझा करने से स्वयं को एक पल के लिए भी नही रोक सकती।
बहुत सुन्दर श्वेता! तुम्हारी भावनाओं की और कल्पनाओं की उड़ान, हमेशा ऊंची होती है.
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