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Sunday, 19 September 2021

नामचीन स्त्रियाँ


नामचीन औरतों की
लुभावनी कहानियाँ

क्या सचमुच
बदल सकती हैं
हाशिये में पड़ी
स्त्री का भविष्य...?

उंगलियों पर
गिनी जा सकने वाली
प्रसिद्ध स्त्रियों को
नहीं जानती
पड़ोस की भाभी,चाची,ताई,
बस्ती की चम्पा,सोमवारी
लिट्टीपाड़ा के बीहड़
में रहनेवाली
मंगली,गुरूवारी
स्पोर्ट्स शू पहने
मंगला हाट से खरीदे
आधुनिक कपड़ों में
सेल्फी खींचकर ही
खुश हो लेती हैं
सयानी होती
पाँचवी तक पढ़ी
बुधनी,सुगनी।

अलग-अलग उम्र में
अलग-अलग पुरूषों के द्वारा
चलायी जाती
चाभीवाले खिलौने जैसी स्त्रियाँ..
टपकते छत के दुख में दुबराती
अपने नाते-रिश्तेदारों का
व्यवहार विश्लेषण करती
नामचीन औरतों के
बनाव,शृंगार
पहनावा-ओढ़ावा पर विमर्श कर
खुश हो लेती हैं।

देहरी के बाहर
कुछ मील में बिखरे
माँ,नानी,दादी के द्वारा
बार-बार दिखाए गये
सपनों को बीनने के क्रम में
ताकभर लेती हैं
देहात के मेले में लगे
रंगीन पोस्टरों की तरह
लगने वाली  स्त्रियों को
कौतुहलवश,
क्योंकि उसे पता है
सपनों के विभिन्न प्रकार में
देहरी के बाहर 
पाँव पसारते ही उसके सपनों को
रिवाज़ के फंदे में 
लटका दिया जाएगा।

नामचीन स्त्रियों से
अनभिज्ञ स्त्रियाँ
नहीं बदल सकती
ढर्रे में चलती
एकरस जीवन में कुछ भी,
नहीं बदल सकती 
समाज की आँखों का पानी,
क्रांति नहीं ला सकती,
फ़ेमिनिज़्म शब्द का
अर्थ भी नहीं समझती
स्त्री आंदोलनों के नारों से
उसे कोई सरोकार नहीं
किंतु 
नामचीन स्त्रियों की भाँति ही
सृष्टि के संचालन का दायित्व
पूरी निष्ठा से निभाती हैं
भूत,वर्तमान और भविष्य 
पोषती हैं
बनकर प्रकृति का 
जिम्मेदार प्रतिरूप।
------------
#श्वेता सिन्हा
१९ सितंबर २०२१

17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना सोमवार. 20 सितंबर 2021 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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  2. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२०-०९-२०२१) को
    'हिन्दी पखवाड़ा'(चर्चा अंक-४१९३)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  3. जीवंत हक्कित ।
    बेहतरीन ! उम्दा ! लाजवाब !

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  4. इस एक रचना पर मेरा समस्त रचना-कर्म न्यौछावर।

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  5. बहुत ही उम्दा और प्रभावशाली रचना! बेहतरीन! लाजवाब!शानदार! जानदार!

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  6. अत्यन्त प्रभावशाली अभिव्यक्ति।

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  7. नामचीन स्त्रियों की भाँति ही
    सृष्टि के संचालन का दायित्व
    पूरी निष्ठा से निभाती हैं
    भूत,वर्तमान और भविष्य
    पोषती हैं
    बनकर प्रकृति का
    जिम्मेदार प्रतिरूप।

    यकिनन, नामचीन स्त्रियों से कहीं ज्यादा ईमानदारी से वो अपने कर्तव्यों का निर्वाह करती है
    बेहतरीन अभिव्यक्ति श्वेता जी,सादर

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  8. यथार्थ को चुनौती देती हुई सशक्त एवं गंभीर सृजन । समूचे अस्तित्व के दायित्व बोध को उद्घाटित करती हुई कृति । मननीय ।

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  9. वाह…बहुत बढ़िया!

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  10. प्रिय श्वेता , कथित नारीवादी स्त्रियों से कहीं अधिक दायित्व बोझ थामे और उसका निष्ठा से निभाती,आम नारी की गरिमा बढ़ाती रचना अपने आप में विशिष्ट है|कथित नामचीन औरतों सरीखे दुस्साहस उसके हिस्से में नहीं आते | पर उसके काँधे पर टिके कर्तव्य-भार के निर्वहन से ही सम्पूर्ण परिवार और समाज निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर है|यही उसके जीवन की सार्थकता है | हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ इस भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए |

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  11. अलग-अलग उम्र में
    अलग-अलग पुरूषों के द्वारा
    चलायी जाती
    चाभीवाले खिलौने जैसी स्त्रियाँ..
    टपकते छत के दुख में दुबराती
    अपने नाते-रिश्तेदारों का
    व्यवहार विश्लेषण करती
    नामचीन औरतों के
    बनाव,शृंगार
    पहनावा-ओढ़ावा पर विमर्श कर
    खुश हो लेती हैं।
    सही कहा पिता भाई पति जैसे मालिकों के लिए तो वह चाभी वाला खिलौना ही है...जब चाहे जैसा व्यवहार व वर्ताव झेलने को अपनी तकदीर मान वह वैसे में ही जीना सीख लेती है...तरक्की के नाम पर वही तथाकथित सैल्फी लेने व ऐसे ही छोटे छोटे कामों से संतुष्ट होने के अलावा उनके पास और विकल्प भी क्या हैं...
    बहुत ही विचारणीय एवं लाजवाब सृजन
    वाह!!!




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  12. आम भारतीय स्त्री जीवन का यथार्थ परिदृष्य दिखाती लाजवाब कृति । सच! जरा किसी आम स्त्री के किनारे से निकल के देखो,सारा स्त्री विमर्श धरा का धरा रह जाता है ।

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  13. नामचीन स्त्रियों से
    अनभिज्ञ स्त्रियाँ
    नहीं बदल सकती
    ढर्रे में चलती
    एकरस जीवन में कुछ भी,
    किंतु
    नामचीन स्त्रियों की भाँति ही
    सृष्टि के संचालन का दायित्व
    पूरी निष्ठा से निभाती हैं
    भूत,वर्तमान और भविष्य
    पोषती हैं
    बनकर प्रकृति का
    जिम्मेदार प्रतिरूप।
    स्त्री जीवन की सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना, श्वेता दी।

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  14. वाह!!!बहुत बढ़िया अभिव्यक्ति!!!

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।