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Wednesday, 9 March 2022

क्यों अधिकार नहीं...



समय के माथे पर
पड़ी झुर्रियाँ 
गहरी हो रही हैं।
अपनी साँसों का
स्पष्ट शोर सुन पाना
जीवन-यात्रा में एकाकीपन के
 बोध का सूचक है।

इच्छाओं की
चारदीवारी पर उड़ रहे हैं जो
श्वेत कपोत
मुक्ति की प्रार्थनाओं के
संदेशवाहक नहीं,
उम्र की पीठ पर लदी
अतृप्ति की बोरियों के
पहरेदार हैं।

मन के पाताल कूप में गूँजती 
कराहों की प्रतिध्वनियाँ
सृष्टि के जन्मदाता से 
चाहती है पूछना
क्यों अधिकार नहीं मुझे
चुन सकूँ
किस रूप में जन्म लूँ ?

-श्वेता सिन्हा