मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday, 15 October 2017
नयन बसे
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नयन बसे घनश्याम, मैं कैसे देखूँ जग संसार। पलकें झुकाये सबसे छुपाये, बैठी घूँघटा डार। मुख की लाली देखे न कोई, छाये लाज अपार।...
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