मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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अबके बरस...टिड्डियाँ... छंदमुक्त कविता सामाजिक
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Saturday, 30 May 2020
अबके बरस
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ताखा पर बरसों से जोड़-जोड़कर रखा अधनींदी और स्थगित इच्छाओं से भरा गुल्लक मुँह चिढ़ा रहा है अबके बरस भी...। खेत से पेट...
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