मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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आख़िर कब तक?...सामाजिक प्रश्न
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Friday, 22 June 2018
आख़िर कब तक?
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आखिर कब तक? एक मासूम दरिंदगी का शिकार हुई यह चंद पंक्तियों की ख़बर बन जाती है हैवानियत पर अफ़सोस के कुछ लफ़्ज़ अख़बार की सुर्ख़ी होक...
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