मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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कचरे में ज़िंदगी की तलाश....सामाजिक कविता
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Saturday, 7 July 2018
कचरे में ज़िंदगी की तलाश
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अक्सर गली के उस मुहाने पर आकर थम जाते है मेरे पैर जहाँ मुहल्लेभर का कचरा बजबजाते कूड़ेदान के आस-पास बिखरा होता है आवारा कुत्तो...
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