मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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गाँव शहर हो जाते हैं....छंदमुक्त कविता
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Monday, 2 December 2019
गाँव शहर हो जाते हैं
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सभ्यताएँ करती हैं बग़ावत परंपराओं की ललकार में भूख हार मान जाती है सोंधी माटी से तकरार में रोटी की आस में जुआ उतार गमछे में कुछ बाँ...
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