मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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छलावा...स्त्री विमर्श..छंदमुक्त कविता
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Friday, 29 May 2020
छलावा
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अपनी छोटी-छोटी जरुरतों के लिए हथेली पसारे ख़ुद में सिकुड़ी, बेबस स्त्रियों को जब भी देखती थी सोचती थी... आर्थिक रूप से...
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