मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 30 August 2018
जागृति
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असहमति और विरोध पर, एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है। हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे, बहुरुपियों के हाथ में आरी है। कोई नहीं वंचित और पीड़ित! ...
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