मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 23 May 2018
जेठ की तपिश
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चित्र:मनस्वी प्राजंल त्रिलोकी के नेत्र खुले जब अवनि अग्निकुंड बन जाती वृक्ष सिकुड़कर छाँह को तरसे नभ कंटक किरणें बरसाती बदरी...
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