मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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पलाश....प्रकृति कविता
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Tuesday, 20 February 2018
पलाश
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पिघल रही सर्दियाँ झर रहे वृक्षों के पात निर्जन वन के दामन में खिलने लगे पलाश सुंदरता बिखरी फाग की चटख रंग उतरे घर आँगन ल...
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Tuesday, 21 February 2017
पलाश
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पिघल रही सर्दियाँ झरते वृक्षों के पात निर्जन वन के दामन में खिलने लगे पलाश सुंदरता बिखरी चहुँओर चटख रंग उतरे घर आँगन उमंग की चली फ...
14 comments:
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