मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Monday, 31 July 2017
लाल मौत
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कल तक अधमरी हो रही सिकुड़ी गिन साँसे ले रही पाकर वर्षा का अमृत जल बलखाती बहकने लगी नदी लाल पानी तटों को तोड़कर राह बस्ती गाँवों पर मोड़क...
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