मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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भरा शहर वीराना है....सामाजिक कविता
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Saturday, 9 June 2018
भरा शहर वीराना है
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पहचाने चेहरे हैं सारे क्यूँ लगता अंजाना है। उग आये हैं कंक्रीट वन भरा शहर वीराना है। बहे लहू जिस्मों पे ख़ंजर न दिखलाओ ऐसा म...
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