मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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भीड़ के हक़ में...मुक्त गज़ल..सामाजिक
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Wednesday, 13 May 2020
भीड़ के हक़...
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भीड़ के हक़ में दूरी है। हर तफ़तीश अधूरी है।। बँटा ज़माना खेमों में, जीना मानो मजबूरी है। फल उसूल के एक नहीं, आदत हो गयी लंग...
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