मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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भीड़...छंदमुक्त सामाजिक कविता
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Monday, 20 April 2020
भीड़
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रौद्र मुख ,भींची मुट्ठियाँ, अंगार नेत्र,तनी भृकुटि ललकार,जयकार,उद्धोष उग्र भीड़ का अमंगलकारी रोष। खेमों में बँटे लोग जिन्ह...
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