मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Tuesday, 26 May 2020
व्याकुल मीन
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रूठे-रूठे न रहो प्रिय, अंतर्मन अकुलाता है। मौन अबूझ संकेतों की, भाषा पढ़-पढ़ बौराता है। प्रश्नों की खींचातानी से मितवा आँखें...
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