मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Tuesday, 25 July 2017
सावन-हायकु
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छेड़ने राग बूँदों से बहकाने आया सावन खिली कलियाँ खुशबु हवाओं की बताने लगी मेंहदी रचे महके तन मन मदमाये है हरी चुड़ियाँ...
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Monday, 24 July 2017
बिन तेरे सावन
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जाओ न सताओ न बरसाओ फुहार साजन बिन क्या सावन बरखा बहार पर्वतों को छुपाकर आँचल में अपने अंबर से धरा तक बादल बन...
13 comments:
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