मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Showing posts with label
सूरज ताका धीरे से....प्रकृति कविता
.
Show all posts
Showing posts with label
सूरज ताका धीरे से....प्रकृति कविता
.
Show all posts
Monday, 3 April 2017
सूरज ताका धीरे से
›
Gud morning🍁 --------- रात की काली चुनर उठाकर सूरज ताका धीरे से अलसाये तन बोझिल पलकें नींद टूट रही धीरे से थोड़ा सा सो जाऊँ और पर ...
15 comments:
›
Home
View web version