मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Sunday, 10 September 2017
ज़िदगी
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हाथों से वक़्त के रही फिसलती ज़िदगी मुट्ठियों से रेत बन निकलती ज़िदगी लम्हों में टूट जाता है जीने का ये भरम हर मोड़ पे सबक लिए है मिलती ...
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Monday, 4 September 2017
मधु भरे थे
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जद्दोज़हद में जीने की, हम तो जीना भूल गये मधु भरे थे ढेरों प्याले, लेकिन पीना भूल गये।। बचपन अल्हड़पन में बीता, औ यौवन मदहोशी में सपने ...
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Thursday, 31 August 2017
क्षणिकाएँ
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ख्वाहिशें रक्तबीज सी पनपती रहती है जीवनभर, मन अतृप्ति में कराहता बिसूरता रहता है अंतिम श्वास तक। ••••••••••••••••••••••••••• मौ...
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Friday, 10 March 2017
आँख में पानी रखो
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आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत सामना कर हर ब...
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