मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 3 June 2017
एक रात ख्वाब भरी
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गीले चाँद की परछाई खोल कर बंद झरोखे चुपके से सिरहाने आकर बैठ गयी करवटों की बेचैनी से रात जाग गयी चाँदनी के धागों में बँधे सितारे ...
तेरा रूठना
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तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना, धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना। ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया बाँधी है आँचल से नेह की गठ...
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Friday, 2 June 2017
मन्नत का धागा
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मुँह मोड़ कर मन की आशाओं को मारना आसां नहीं होता बहारों के मौसम में, खुशियों के बाग में. काँटों को पालना बहती धार से बाहर ...
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Thursday, 1 June 2017
मन का बोझ
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मन का बोझ ---------------------- बेचैन करवट बदलती मैं उठ बैठ गयी। तकिये के नीचे से टटोलकर क्लच ढूँढकर बिखरे बालों को समेटकर उस...
Tuesday, 30 May 2017
किस तरह भुलाऊँ उनको
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ऐ दिल बता किस तरह भुलाऊँ उनको फोडूँ शीशा ए दिल न नज़र आऊँ उनको काँटें लिपटे मुरझाते नहीं गुलाब यादों के तन्हा बाग में रो रोके गले लगाऊ...
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Friday, 26 May 2017
तुम्हारा स्पर्श
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मेरे आँगन से बहुत दूर पर्वतों के पीछे छुपे रहते थे नेह के भरे भरे बादल तुम्हारे स्नेहिल स्पर्श पाकर मन की बंजर प्यासी भूमि पर बरसने...
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समेटे कैसे
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सुर्ख गुलाब की खुशबू,हथेलियों में समेटे कैसे झर रही है ख्वाहिशे संदीली,दामन में समेटे कैसे गुज़र जाते हो ज़ेहन की गली से बन ख्याल आवारा ...
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Wednesday, 24 May 2017
तुम्हारी तरह
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गुनगुना रही है हवा तुम्हारी तरह मुस्कुरा रहे है गुलाब तुम्हारी तरह ढल रही शाम छू रही हवाएँ तन जगा रही है तमन्ना तुम्हारी तरह हंस के...
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