मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 10 June 2017
जब भी
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जब भी जख्म तेरे यादों के भरने लगते है किसी बहाने हम तुम्हे याद करने लगते है हर अजनबी चेहरा पहचाना दिखाई देता है जब भी हम तेरी गली से ...
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Thursday, 8 June 2017
अजनबी ही रहे
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हम अजनबी ही रहे इतने मुलाकातों के बाद न उतर सके दिल में कितनी मुलाकातों के बाद चार दिन बस चाँदनी रही मेरे घर के आँगन में तड़पती आहें ब...
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Wednesday, 7 June 2017
पुरानी डायरी
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सालों बाद आज हाथ आयी मेरी पुरानी डायरी के खोये पन्ने, फटी डायरी की खुशबू में खोकर, छूकर उंगलियों के पोर से गुजरे वक्त को ...
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Tuesday, 6 June 2017
पहली फुहार
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तपती धरा के आँगन में उमड़ घुमड़ कर छाये मेघ दग्ध तनमन के प्रांगण में शीतल छाँव ले आये मेघ हवा होकर मतवारी चली बिजलियो की कटारी चली ल...
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Saturday, 3 June 2017
एक रात ख्वाब भरी
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गीले चाँद की परछाई खोल कर बंद झरोखे चुपके से सिरहाने आकर बैठ गयी करवटों की बेचैनी से रात जाग गयी चाँदनी के धागों में बँधे सितारे ...
तेरा रूठना
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तन्हा हर लम्हें में यादों को खोलना, धीमे से ज़ेहन की गलियों में बोलना। ओढ़ के मगन दिल प्रीत की चुनरिया बाँधी है आँचल से नेह की गठ...
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Friday, 2 June 2017
मन्नत का धागा
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मुँह मोड़ कर मन की आशाओं को मारना आसां नहीं होता बहारों के मौसम में, खुशियों के बाग में. काँटों को पालना बहती धार से बाहर ...
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Thursday, 1 June 2017
मन का बोझ
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मन का बोझ ---------------------- बेचैन करवट बदलती मैं उठ बैठ गयी। तकिये के नीचे से टटोलकर क्लच ढूँढकर बिखरे बालों को समेटकर उस...
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