मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 7 July 2017
बुझ गयी शाम
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बुझ गयी शाम गुम हुई परछाईयाँ भी जल उठे चराग साथ मेरी तन्हाइयाँ भी दिल के मुकदमे में दिल ही हुआ है दोषी हो गया फैसला बेकार है सुनवाईया...
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ज़िदगी तेरी राह में
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जिंदगी तेरे राह में हर रंग का नज़ारा मिला कभी खुशी तो कभी गम बहुत सारा मिला जो गुजरा लम्हा खुशी की पनाह से होकर बहुत ढ़ूँढ़ा वो प...
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Thursday, 6 July 2017
वहम
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आँखों के दरीचे में तेरे ख्यालों की झलक और दिल के पनाहों में किसी दर्द का डेरा शाखों पे यादों के सघन वन में ढ़ूँढ़ता तुम्हें रात रात भर...
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एक एक पल
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आँख में थोड़ा पानी होठों पे चिंगारी रखो ज़िदा रहने को ज़िदादिली बहुत सारी रखो राह में मिलेगे रोड़े,पत्थर और काँटें भी बहुत सामना कर ह...
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संभव नहीं
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राह के कंटकों से हार मानूँ मैं,संभव नहीं। बिना लड़े जीवन भार मानूँ मैं,संभव नहीं। हंसकर,रोकर ,ख्वाहिश बोकर,भूल गम खुशियो...
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Tuesday, 4 July 2017
कभी तो नज़र डालिए
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कभी तो नज़र डालिए अपने गिरेबान में ज़माना ही क्यों रहता बस आपके ध्यान में कुछ ख्वाब रोज गिरते है पलकों से टूटकर फिर भोर को मिलते है ...
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सच के धरातल पर बरखा
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भोर की अधखुली पलकों में अलसाये ज्यों ही खिड़कियों के परदे सरकाये एक नम का शीतल झोके ने दुलराया झरोखे के बाहर फैले मनोरम दृश्य से मन का...
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Sunday, 2 July 2017
रात के तीसरे पहर
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सुरमई रात के उदास चेहरे पे कजरारे आसमां की आँखों से टपकती है लड़ियाँ बूँदों की झरोखे पे दस्तक देकर जगाती है रात के तीसरे पहर मिचमिचात...
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