मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 8 December 2017
हाँ मैं ख़्वाब लिखती हूँ
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हाँ,मैं ख़्वाब लिखती हूँ अंतर्मन के परतों में दबे भावों की तुलिका के नोकों से रंग बिखेरकर शब्द देकर मन के छिपे उद्गगार को म...
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सूरज
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भोर की अलगनी पर लटके घटाओं से निकल बूँदें झटके स्वर्ण रथ पर होकर सवार भोर का संजीवन लाता सूरज झुरमुटों की ओट से झाँकता चिड़ि...
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Sunday, 3 December 2017
मेरी मिसरी डली
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सोनचिरई मेरी मिसरी डली बगिया की मेरी गुलाबी कली प्रथम प्रेम का अंकुर बन जिस पल से तुम रक्त में घुली रोम-रोम, तन-मन की ...
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Saturday, 25 November 2017
रात
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सर्द रात के नम आँचल पर धुँध में लिपटा तन्हा चाँद जाने किस ख़्याल में गुम है झीनी चादर बिखरी चाँदनी लगता है किसी क...
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Friday, 24 November 2017
शाम
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शाम --- उतर कर आसमां की सुनहरी पगडंडी से छत के मुंडेरों के कोने में छुप गयी रोती गीली गीली शाम कुछ बूँदें छितराकर तुलसी के चौबारे...
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Tuesday, 21 November 2017
एक लड़की.......कथा काव्य
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सारी दुनिया से छुप- छुपकर वो ख़ुद से बातें करती थी नीले नभ में चिड़ियों के संग बहुत दूर उड़ जाती थी बना के मेघों का घरौंदा हवा में ही...
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Monday, 20 November 2017
पत्थर के शहर में
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पत्थर के शहर में शीशे का मकान ढूँढ़ते हैं। मोल ले जो तन्हाइयाँ ऐसी एक दुकान ढूँढ़ते हैं।। हर बार खींच लाते हो ज़मीन पर ख़्वाबों स...
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Sunday, 19 November 2017
दो दिन का इश्क़
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मेरी तन्हाइयों में तुम्हारा एहसास कसमसाता है, तुम धड़कनों में लिपटे हो मेरी साँसें बनकर। बेचैन वीरान साहिल पे बिखर...
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