मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Friday, 16 February 2018
ब्लॉग की सालगिरह.... चाँद की किरणें
›
सालभर बीत गये कैसे...पता ही नहीं चला। हाँ, आज ही के दिन १६फरवरी२०१७ को पहली बार ब्लॉग पर लिखना शुरु किये थे। कुछ पता नहीं था ब्लॉग के बा...
23 comments:
Wednesday, 14 February 2018
निषिद्ध प्रेम नहीं
›
स्मृति पीड़ा की अमरबेल मन से बिसराना चाहती हूँ मैं न भाये जग के कोलाहल प्रियतम,मुस्काना चाहती हूँ मैं मौसम की मधुमय प्रीति ...
20 comments:
Sunday, 11 February 2018
चिरयौवन प्रेम
›
तुम्हारे गुस्से भरे बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में बैशाख की...
42 comments:
Friday, 9 February 2018
पंखुड़ियाँ
›
पंखुड़ियाँ 24 कहानी 24 लेखक आप सभी को यह बताते हुये हर्ष हो रहा है कि डिजिटल कहानी संग्रह "पंखुड़ियाँ" में मेरी भी कहानी ...
4 comments:
Wednesday, 7 February 2018
वो गुम रहे
›
वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन यादों ने उनकी छू लि...
18 comments:
Friday, 2 February 2018
कोमल मन हूँ मैं
›
ज्योति मैं पूजा की पावन गीतिका की छंद हूँ मैं धरा गगन के मध्य फैली एक क्षितिज निर्द्वन्द्व हूँ मैं नभ के तारों में नहीं हूँ ना च...
20 comments:
Tuesday, 30 January 2018
इंद्रधनुष
›
मौन की चादर डाले नीले आसमान पर छींटदार श्वेत बादलों की छाँव में बाँह पसारे हवाओं के संग बहते परिंदे मानो वक़्त के समुन्द...
18 comments:
Sunday, 28 January 2018
तितली
›
मुद्दतों बाद आज फिर से भूली-बिसरी राहों से गुज़रते हरे मैदान के उपेक्षित कोने में गुलाब क...
14 comments:
‹
›
Home
View web version