मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Tuesday, 20 February 2018
पलाश
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पिघल रही सर्दियाँ झर रहे वृक्षों के पात निर्जन वन के दामन में खिलने लगे पलाश सुंदरता बिखरी फाग की चटख रंग उतरे घर आँगन ल...
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Friday, 16 February 2018
ब्लॉग की सालगिरह.... चाँद की किरणें
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सालभर बीत गये कैसे...पता ही नहीं चला। हाँ, आज ही के दिन १६फरवरी२०१७ को पहली बार ब्लॉग पर लिखना शुरु किये थे। कुछ पता नहीं था ब्लॉग के बा...
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Wednesday, 14 February 2018
निषिद्ध प्रेम नहीं
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स्मृति पीड़ा की अमरबेल मन से बिसराना चाहती हूँ मैं न भाये जग के कोलाहल प्रियतम,मुस्काना चाहती हूँ मैं मौसम की मधुमय प्रीति ...
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Sunday, 11 February 2018
चिरयौवन प्रेम
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तुम्हारे गुस्से भरे बनते-बिगड़ते चेहरे की ओर देख पाने का साहस नहीं कर पाती हूँ भोर के शांत,निखरी सूरज सी तुम्हारी आँखों में बैशाख की...
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Friday, 9 February 2018
पंखुड़ियाँ
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पंखुड़ियाँ 24 कहानी 24 लेखक आप सभी को यह बताते हुये हर्ष हो रहा है कि डिजिटल कहानी संग्रह "पंखुड़ियाँ" में मेरी भी कहानी ...
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Wednesday, 7 February 2018
वो गुम रहे
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वो गुम रहे अपने ही ख़्यालों की धूल में करते रहे तलाश जिन्हें फूल-फूल में गीली हवा की लम्स ने सिहरा दिया बदन यादों ने उनकी छू लि...
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Friday, 2 February 2018
कोमल मन हूँ मैं
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ज्योति मैं पूजा की पावन गीतिका की छंद हूँ मैं धरा गगन के मध्य फैली एक क्षितिज निर्द्वन्द्व हूँ मैं नभ के तारों में नहीं हूँ ना च...
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Tuesday, 30 January 2018
इंद्रधनुष
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मौन की चादर डाले नीले आसमान पर छींटदार श्वेत बादलों की छाँव में बाँह पसारे हवाओं के संग बहते परिंदे मानो वक़्त के समुन्द...
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