मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 7 April 2018
उड़ान भरें
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चलो बाँध स्वप्नों की गठरी रात का हम अवसान करें नन्हें पंख पसार के नभ में फिर से एक नई उड़ान भरेंं बूँद-बूँद को जोड़े बादल धर...
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Tuesday, 3 April 2018
आरक्षण
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आरक्षण के नाम पर घनघोर मचा है क्लेश अधिकारों के दावानल में पल-पल सुलगता देश लालच विशेषाधिकार का निज स्वार्थ में भ्रमित हो ...
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Saturday, 31 March 2018
मूरखता का वरदान
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समझदारी का पाठ पढ़ हम अघा गये भगवान थोड़ी सी मूरखता का अब तुमसे माँगे वरदान अदब,कायदे,ढ़ंग,तरतीब सब झगड़े बुद्धिमानों के प्रे...
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Thursday, 29 March 2018
राष्ट्रधर्म
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धर्म के नाम पर कराह रही इंसानियत राम,अल्लाह मौन है शोर मचाये हैवानियत धर्म के नाम पर इंसानों का बहिष्कार है मज़हबी नार...
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Wednesday, 28 March 2018
एहसास का बवंडर
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सूना बड़ा है तुम बिन ख़्वाबों का टूटा खंडहर। तुमसे ही मुस्कुराये खुशियों का कोई मंज़र ।। होने लगी है हलचल मेरे दिल की वादियों म...
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Friday, 23 March 2018
एहसास
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मौन हृदय के स्पंदन के सुगंध में खोये जग के कोलाहल से परे एक अनछुआ एहसास सम्मोहित करता है एक अनजानी कशिश खींचती है अपनी ओर ...
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Wednesday, 14 March 2018
अधूरा टुकड़ा
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बूढ़े पीपल की नवपत्रों से ढकी इतराती शाखों पर कूकती कोयल की तान हृदय केे सोये दर्द को जगा गयी हवाओं की हँसी से बिखरे बेरंग...
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Saturday, 10 March 2018
हथेली भर प्रेम
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मौन के इर्द-गिर्द मन की परिक्रमा अनुत्तरित प्रश्नों के रेत से छिल जाते है शब्द डोलते दर्पण में अस्पष्ट प्रतिबिंब पुतलियाँ...
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