मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 1 September 2018
स्वर खो देती हूँ
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पग-पग के अवरोधों से मैं घबराकर रो देती हूँ झंझावातों से डर-डरकर समय बहुमूल्य खो देती हूँ संसृति की मायावी भँवरों में सुख-दु...
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Thursday, 30 August 2018
जागृति
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असहमति और विरोध पर, एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है। हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे, बहुरुपियों के हाथ में आरी है। कोई नहीं वंचित और पीड़ित! ...
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Friday, 24 August 2018
अनछुआ मन
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जीवन-यात्रा में बूँद भर तृप्ति की चाह लिये रेगिस्तान-सी मरीचिका में भटकता है मन, छटपटाहटाता व्याकुल गर्म रेत के अंगारें को...
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Saturday, 18 August 2018
भावों का ज्वार
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गहराती , ढलती शाम और ये तन्हाई बादलों से चू कर नमी पलकों में भर आई। गीला मौसम, गीला आँगन, गीला मन मतवारा संझा-बाती,...
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Tuesday, 14 August 2018
आज़ादी
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अभी मैं कैसे जश्न मनाऊँ,कहाँ आज़ादी पूरी है, शब्द स्वप्न है बड़ा सुखद, सच को जीना मजबूरी है। आज़ादी यह बेशकीमती, भेंट किया हमें वीरों ने...
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Sunday, 12 August 2018
दृग है आज सजल
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मौन हृदय की घाटी में दिवा सांझ की पाटी में बेकल मन बौराया तुम बिन पल-पल दृग है आज सजल मन के भावों को भींचता पग पीव छालों क...
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Wednesday, 8 August 2018
अजीर्णता नदियों की
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देखते-देखते जलधारा ने लिया रुप विकराल लील गयी पग-पग धरती का जकड़ा काल कराल तट की चट्टानों से टकरा विदीर्ण जीवन पोत हुआ...
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Tuesday, 31 July 2018
क़लम के सिपाही
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क़लम के सिपाही, जाने कहाँ तुम खो गये? है ढूँढती लाचार आँख़ें सपने तुम जो बो गये अन्नदाता अन्न को तरसे मरते कर्ज और भूख से ...
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