मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Thursday, 27 September 2018
तुम खुश हो तो अच्छा है
›
मन दर्पण को दे पत्थर की भेंट तुम खुश हो तो अच्छा है मुस्कानों का करके गर आखेट तुम खुश हो तो अच्छा है मरु हृदय में ढूँढता छाय...
24 comments:
Saturday, 22 September 2018
तृष्णा
›
मदिर प्रीत की चाह लिये हिय तृष्णा में भरमाई रे जानूँ न जोगी काहे सुध-बुध खोई पगलाई रे सपनों के चंदन वन महके चंचल पाखी मधु...
31 comments:
Wednesday, 19 September 2018
समुंदर
›
मोह के समुंदर में डूबता उतराता मन छटपटाती लहर भाव की वेग से आती आहृलादित होकर किलकती,शोर मचाती बहा ले जाना चाहती है अपनी म...
17 comments:
Sunday, 9 September 2018
मितवा मेरे
›
हिय की हुकहुक सुन जा रे ओ बेदर्दी मितवा मेरे जान के यूँ अनजान न बन ओ निर्मोही मितवा मेरे माना कि तेरे सपनों की, सुंदर तस्...
32 comments:
Wednesday, 5 September 2018
शिक्षक
›
नित नन्हे माटी के दीपक गढ़ते, नव अंकुरित भविष्य के रक्षक हैं । सपनों में इंद्रधनुषी रंग भरने वाले, अद्वितीय चित्रकार शिक्षक हैं। ...
28 comments:
Saturday, 1 September 2018
स्वर खो देती हूँ
›
पग-पग के अवरोधों से मैं घबराकर रो देती हूँ झंझावातों से डर-डरकर समय बहुमूल्य खो देती हूँ संसृति की मायावी भँवरों में सुख-दु...
14 comments:
Thursday, 30 August 2018
जागृति
›
असहमति और विरोध पर, एकतरफ़ा फ़रमान ज़ारी है। हलक़ से ख़ींच ज़ुबान काटेंगे, बहुरुपियों के हाथ में आरी है। कोई नहीं वंचित और पीड़ित! ...
13 comments:
Friday, 24 August 2018
अनछुआ मन
›
जीवन-यात्रा में बूँद भर तृप्ति की चाह लिये रेगिस्तान-सी मरीचिका में भटकता है मन, छटपटाहटाता व्याकुल गर्म रेत के अंगारें को...
19 comments:
‹
›
Home
View web version