मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 11 May 2019
सुनो न माँ....
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मातृ दिवस का कितना औचित्य है पता नहीं..। माँ तो हमेशा से किसी भी बच्चे के लिए उसके व्यक्तित्व का अस्तित्व का हिस्सा है न...फिर एक दिन ...
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Thursday, 9 May 2019
प्रतीक्षा
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बैशाख की बेचैन दुपहरी दग्ध धरा की अकुलाहट, सुनसान सड़कों पर चिलचिलाती धूप बरगद के पत्तों से छनकती चितकबरी-सी तन को भस्म ...
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Sunday, 5 May 2019
गुलमोहर
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गरमी की अलसायी सुबह, जब तुम बुनते हो दिनभर के सपने अपने मन की रेशमी डोरियों से, रक्ताभ आसमान से टपककर आशा की किरणें भर ज...
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Friday, 3 May 2019
तुम
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चुप रहूँ तो शायद दिल तेरा ख़ुशलिबास हो दुआ हर लम्हा,खुश रहे तू न कभी उदास हो तुम बिन जू-ए-बेकरार,हर सिम्त तलब तेरी करार आता नह...
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Wednesday, 1 May 2019
मज़दूर
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मज़दूर का नाम आते ही एक छवि ज़ेहन में बनती है दो बलिष्ठ भुजाएँ दो मज़बूत पाँव बिना चेहरे का एक धड़, और एक पारंपरिक सोच, ...
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Sunday, 28 April 2019
तुझमें ही...मन#१
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बरबस ही सोचने लगी हूँ उम्र की गिनती भूलकर मन की सूखती टहनियों पर नरम कोंपल का अँखुआना ख़्यालों के अटूट सिलसिले तुम्हारे आते ह...
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Saturday, 27 April 2019
धूप
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तमतमाते धूप का बेरंग चेहरा देख बालकनी के गमलों में खिलखिलाते गुलाब,बेली,सदाबहार के फूल सहम गये,गर्दन झुकाये, बैठक की काँ...
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Wednesday, 24 April 2019
पुकार
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पृथ्वी दिवस पर मेरी एक रचना पत्रिका लोकजंग में- पुकार --- पेड़ों का मौन रुदन सुनो अनसुना करो न तुम साथी हरियाली खो जायेगी ...
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