मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday 4 April 2020
धर्म...संकटकाल में
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हृदय में बहती स्वच्छ धमनियों में किर्चियाँ नफ़रत की घुलती हैं जब, विषैली,महीन, नसों की नरम दीवारों से रगड़ाकर घायल कर द...
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Thursday 2 April 2020
असंतुलन
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क्या सचमुच एकदिन मर जायेगी इंसानियत? क्या मानवता स्व के रुप में अपनी जाति,अपने धर्म अपने समाज के लोगों की पहचान बनकर इतरा...
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Tuesday 24 March 2020
इंसानियत की बलि
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आदिम पठारों, के आँचल में फैले बीहड़ हरीतिमा में छिपे, छुट्टा घूमते जंगली जानवरों की तरह खूँखार,दुर्दांत .. क्या सच्चा साम...
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Tuesday 17 March 2020
महामारी से महायुद्ध
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काल के धारदार नाखून में अटके मानवता के मृत, सड़े हुये, अवशेष से उत्पन्न परजीवी विषाणु, सबसे कमजोर शिकार की टोह में दम साध...
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Sunday 8 March 2020
लालसा
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रंगीन,श्वेत-स्याह तस्वीरों में जीवन की उपलब्लियों की छोटी-बड़ी अनगिनत गाथाओं में उत्साह से लबरेज़ आत्मविश्वास के साथ म...
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Tuesday 3 March 2020
उम्र
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उम्र के पेड़ से निःशब्द टूटती पत्तियों की सरहराहट, शिथिल पलों में सुनाई पड़ती है, मौन एकांत में समय की खुली संदूकची से ...
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Sunday 23 February 2020
विरहिणी/वसंत
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सूनी रात के अंतिम प्रहर एक-एककर झरते वृक्षों से विलग होकर गली में बिछे, सूखे पत्रों को सहलाती पुरवाई ने उदास ड्योढ़ी को स...
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Sunday 16 February 2020
मधुमास
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बर्फीली ठंड,कुहरे से जर्जर, ओदायी, शीत की निष्ठुरता से उदास, पल-पल सिहरती आखिरी साँस लेती पीली पात मधुमास की प्रतीक्षा मे...
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