मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 9 April 2020
दायित्व
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प्रकृति के कोप के विस्फोट के फलस्वरूप नन्हें-नन्हें असंख्य मृत्यु दूत ब्रह्मांड के अदृश्य पटल से धरा पर आक्रमण कर सृष्टि से ...
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Wednesday, 8 April 2020
शायद....!!!
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हो जो पेट भरा तो दिमाग़ निवाले गिन सकता है, भात के दानों से मसल-मसलकर खर-कंकड़ बीन सकता है, पर... भूख का ...
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Saturday, 4 April 2020
धर्म...संकटकाल में
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हृदय में बहती स्वच्छ धमनियों में किर्चियाँ नफ़रत की घुलती हैं जब, विषैली,महीन, नसों की नरम दीवारों से रगड़ाकर घायल कर द...
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Thursday, 2 April 2020
असंतुलन
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क्या सचमुच एकदिन मर जायेगी इंसानियत? क्या मानवता स्व के रुप में अपनी जाति,अपने धर्म अपने समाज के लोगों की पहचान बनकर इतरा...
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Tuesday, 24 March 2020
इंसानियत की बलि
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आदिम पठारों, के आँचल में फैले बीहड़ हरीतिमा में छिपे, छुट्टा घूमते जंगली जानवरों की तरह खूँखार,दुर्दांत .. क्या सच्चा साम...
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Tuesday, 17 March 2020
महामारी से महायुद्ध
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काल के धारदार नाखून में अटके मानवता के मृत, सड़े हुये, अवशेष से उत्पन्न परजीवी विषाणु, सबसे कमजोर शिकार की टोह में दम साध...
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Sunday, 8 March 2020
लालसा
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रंगीन,श्वेत-स्याह तस्वीरों में जीवन की उपलब्लियों की छोटी-बड़ी अनगिनत गाथाओं में उत्साह से लबरेज़ आत्मविश्वास के साथ म...
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Tuesday, 3 March 2020
उम्र
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उम्र के पेड़ से निःशब्द टूटती पत्तियों की सरहराहट, शिथिल पलों में सुनाई पड़ती है, मौन एकांत में समय की खुली संदूकची से ...
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