मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 25 June 2020
वह उदास औरत
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चित्र : मनस्वी प्राजंल अंधेरे मुँह बेआवाज़ उठकर ठंडी बालकनी में पाँव सिकोड़े मूढ़े पर बुत-सी बैठी दूर तक पसरी नीरवता, गहन अंध...
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Saturday, 20 June 2020
सैनिक मेरे देश के
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सूर्य की किरणें निचोड़ने पर उसके अर्क से गढ़ी आकृतियाँ, सैनिक मेरे देश के। चाँदनी की स्वप्निल डोरियों से उकेरे रेखाच...
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Wednesday, 17 June 2020
नियति
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तुम्हारी प्राथमिकताओं की सूची में सर्वोच्च स्थान पाने की कामना सदा रही, किंतु तुम्हारी विकल्पों की सूची में भी स्वयं को सबसे अं...
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Sunday, 14 June 2020
शोक गीत
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चेतना के बंद कपाट के पार, मनमुताबिक न मिल पाने की तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षिप्त, भरभरायी उम्मीद घूरती है। अप्राप्य इच्छा...
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Wednesday, 10 June 2020
क्या तुम नहीं डरते?
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सुनो ओ!जंगल के दावेदारों विकास के नाम पर लालच और स्वार्थ की कुल्हाड़ी लिए तुम्हारी जड़ को धीरे-धीरे बंजर करते, तुम्हारी आँखों...
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Tuesday, 2 June 2020
दस्तक...
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नन्हें जुगनुओं को स्याह दुपट्टे के किनारों में गूँथती रात शाम से ही करती पहरेदारी नभ के माथे पर लगाकर दमकते चाँद का र...
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Saturday, 30 May 2020
अबके बरस
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ताखा पर बरसों से जोड़-जोड़कर रखा अधनींदी और स्थगित इच्छाओं से भरा गुल्लक मुँह चिढ़ा रहा है अबके बरस भी...। खेत से पेट...
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Friday, 29 May 2020
छलावा
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अपनी छोटी-छोटी जरुरतों के लिए हथेली पसारे ख़ुद में सिकुड़ी, बेबस स्त्रियों को जब भी देखती थी सोचती थी... आर्थिक रूप से...
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