मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday 27 March 2021
कली केसरी पिचकारी
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कली केसरी पिचकारी मन अबीर लपटायो, सखि रे! गंध मतायो भीनी राग फाग का छायो। चटख कटोरी इंद्रधनुषी वसन वसुधा रंगवायो, सरसों पीली,नीली नदियाँ स...
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Friday 19 March 2021
उम्र अटकी रह जाती है
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विचारों के विशाल सिंधु की लयबद्ध लहरें मथती रहती है अनवरत, मंथन से प्राप्त विष-अमृत के घटो का विश्लेषण करता जीवन नौका पर सवार 'उम्र...
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Wednesday 3 March 2021
हे प्रकृति...
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मुझे ठहरी हुई हवाएँ बेचैन करती हैं बर्फीली पहाड़ की कठिनाइयाँ असहज करती है तीख़ी धूप की झुलसन से रेत पर पड़ी मछलियों की भाँति छटपटाने लगती हूँ ...
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Thursday 25 February 2021
जोगिया टेसू मुस्काये रे
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गुन-गुन छेड़े पवन बसंती धूप की झींसी हुलसाये रे, वसन हीन वन कानन में जोगिया टेसू मुस्काये रे। ऋतु फाग के स्वागत में धरणी झूमी पहन महावर, अ...
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Monday 22 February 2021
दौर नहीं है
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कुछ भी लिखने कहने का दौर नहीं हैं। अर्थहीन शब्द मात्र,भावों के छोर नहीं हैं। उम्मीद के धागों से भविष्य की चादर बुन लेते हैं विविध रंगों से भ...
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Thursday 11 February 2021
मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...।
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मैं प्रकृति के प्यार में हूँ...। किसी उजली छाँह की तलाश नहीं है किसी मीठे झील की अब प्यास नहीं है, नभ धरा के हाशिये के आस-पास धडक रही है धीम...
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Saturday 6 February 2021
उत्तरदायी
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शताब्दियों से विश्व की तमाम सभ्यताओं के आत्ममुग्ध शासकों के द्वारा प्रजा के लिए बनाये नियम और निर्गत विशेषाधिकार के समीकरणों से असंतुष्ट, अ...
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Saturday 30 January 2021
बापू
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व्यक्ति से विचार और विचार से फिर वस्तु बनाकर भावनाओं के थोक बाज़ार में ऊँचे दामों में में बेचते देख रही हूँ। चश्मा,चरखा, लाठी,धोती,टोप...
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