मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 1 August 2024
प्रेम-पत्र
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सालों बाद मन पर आज फिर बारिशों की टिपटिपाहट दस्तक देने लगी उदासियों के संदूक खोलकर तुम्हारे अनलिखे प्रेम-पत्र पढ़ते हुए भावों के आवरण में ...
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Monday, 10 June 2024
कवि के सपने
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कवि की आँखों की चौहद्दी सुंदर उपमाओं और रूपकों से सजी रहती है बेलमुंडे जंगलों के रुदन में कोयल की कूक, तन-मन झुलसाकर ख़ाक करती गर्मियों में ब...
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Thursday, 16 May 2024
ज़िंदगी
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ख़ानाबदोश की प्रश्नवाचक यात्रा -सी दर-ब-दर भटकती है ज़िंदगी समय की बारिश के साथ बहता रहता है उम्र का कच्चापन देखे-अनदेखे पलों के ब्लैक बोर्ड प...
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Monday, 22 April 2024
खो रहा मेरा गाँव
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खो रहा मेरा गाँव --------- पंछी और पथिक ढूँढ़ते सघन पेड़ की छाँव, रो-रो गाये काली चिड़िया खो रहा मेरा गाँव। दहकती दुपहरी ढूँढ़ रही मिलता नहीं ह...
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Sunday, 3 March 2024
मेरी चेतना
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मेरी चेतना -------- अनगिनत पहाड़ ऐसे हैं जो मेरी कल्पनाओं में भी समा न पाये, असंख्य नदियों की जलधाराओं के धुंध के तिलिस्म से वंचित हूँ; बीहड़...
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Thursday, 15 February 2024
क्या फर्क पड़ जायेगा
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क्या फर्क पड़ जायेगा -------- हर बार यही सोचती हूँ क्यों सोचूँ मैं विशेष झुण्ड की तरह निपुणता से तटस्थ रहूँगी... परंतु घटनाक्रमों एवं विचारो...
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