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Monday, 1 May 2017

ख्वाहिशों का पंछी

बरसों से निर्विकार,
निर्निमेष,मौन अपने
पिंजरे की चारदीवारियों
में कैद, बेखबर रहा,
वो परिंदा अपने नीड़
में मशगूल भूल चुका था
उसके पास उड़ने को
सुंदर पंख भी है
खुले आसमां में टहलते
रुई से बादल को देख
शक्तिहीन परों को
पसारने का मन हो आया
मरी हुई नन्ही ख्वाहिशे
बुलाने लगी है पास
अनंत आसमां की गोद,
में भूलकर, काटकर
जाल बंधनों का ,उन्मुक्त
स्वछंद फिरने की चाहत
हो आयी है।
वो बैठकर बादलों की
शाखों पर तोड़ना
चाहता है सूरज की लाल
गुलाबी किरणें,देखना
चाहता है इंद्रधनुष के
रंगों को ,समेटना
चाहता है सितारों को,
अपने पलकों में
समाना चाहता है
चाँद के सपनीले ख्वाब
भरना चाहता है,
उदास रंगहीन मन में
हरे हरे विशाल वृक्षो़ के
चमकीले रंग,
पीना है क्षितिज से
मिलती नदी के निर्मल जल को
चूमना है गर्व से दिपदिपाते
पर्वतशिख को,
आकाश के आँगन में
अपने को पसारे
उड़ान चाहता है अपने मन
के सुख का,
नादां मन का मासूम पंछी
भला कभी तोड़ भी पायेगा
अपने नीड़ के रेशमी धागों का
सुंदर पिंजरा,
अशक्त पर, सिर्फ मन की उडान
ही भर सकते है,
बेजान परों में ताकत बची ही नहीं
वर्जनाओं को तोड़कर
अपना आसमां पाने की।

     #श्वेता🍁

4 comments:

  1. हरे हरे विशाल वृक्षो़ के चमकीले रंग,
    पीना है क्षितिज से मिलती नदी के निर्मल जल को
    चूमना है गर्व से दिपदिपाते पर्वतशिख को,
    आकाश के आँगन में अपने को पसारे उड़ान चाहता है अपने मन के सुख का.....

    यह अनुबंधित अन्तर्मात्मा की अनचाही मगर अटूट अनुबंधो से विमुक्त होने की चाह है, मगर वह इस सत्य से विमुख नही है।।।।।

    वाह क्या बात है श्वेता जी। आभार

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    1. बहुत.आभार शुक्रिया आपका p.k ji

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  2. इस प्रकार का तब्सिरा लिखा नही जा सकता, रचा जा सकता है, केवल पन्नों पर उतारा जा सकता है। अतिसंवेदनशील ह्रदय की कल्पनाशीलता का उत्कृष्टम उदाहरण देती आपकी रचना कमाल ही कही जा सकती है।

    आपकी रचनाओं में गुलज़ार साब की शैली का अल्हड़ सौंधापन है। आपकी उत्कृष्टता हिम शिखर को छुये ऐसी कामना है। नमन आपको

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया मौलिक जी आपके सराहनीय शब्द़ो के लिए हृदय से कृतज्ञ है।
      कृपया आगे भी उत्साहवर्धन करते रहे।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।