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Tuesday, 2 May 2017

शहीदों के लिए

कडी़ निंदा करने का अच्छा दस्तूर हो गया
कब समझोगे फिर से बेटा माँ से दूर हो गया

रोती बेवाओं का दर्द कोई न जान पाया
और वो पत्थरबाज देश में मशहूर हो गया

कागज़ पर बयानबाजी अब बंद भी करो तुम
माँगे है इंसाफ क्या वीरों का खूं फिजूल हो गया

सह रहे हो मुट्ठीभर भेड़ियों की मनमानी को
शेर ए हिंदुस्तान इतना कबसे मजबूर हो गया

दंड दो प्रतिशोध लो एक निर्णय तो अब कठोर लो
हुक्मरानों की नीति का हरजाना तो भरपूर हो गया

उपचार तो करना होगा इस दर्द बेहिसाब का
सीमा का जख्म पककर अब नासूर हो गया

         #श्वेता🍁


1 comment:

  1. श्वेता सिन्हा जी आपके लिए हमारे ब्लॉग पर कुछ है वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।