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Tuesday, 9 May 2017

ख्वाब

खामोश रात के दामन में,
जब झील में पेड़ों के साये,
गहरी नींद में सो जाते हैंं
उदास झील को दर्पण बना
अपना मुखड़ा निहारता,
चाँद मुस्कुराता होगा,
सितारों जड़ी चाँदनी की
झिलमिलाती चुनरी ओढ़कर
डबडबाती झील की आँखों में
मोतियों-सा बिखर जाता होगा
पहर-पहर रात को करवट
बदलती देख कर,
दिल आसमां का,
धड़क जाता होगा
दूर अपने आँगन मेंं बैठा
मेरे ख़्यालों में डूबा "वो"
हथेलियों में रखकर चाँद
आँखों में भरकर मुहब्बत
मेरे ख़्वाब सजाता तो होगा।

      #श्वेता सिन्हा

2 comments:

  1. अद्भुत। अकल्पनीय है इस प्रकार का तसव्वुर इस प्रकार का तब्सिरा। आपकी लेखनी चमत्कृत करती है।

    सितारों जड़ी चाँदनी की
    झिलमिलाती चुनरी ओढ़कर
    डबडबाती झील की आँखों में
    मोतियों सा बिखर जाता होगा...

    आपकी लेखनी को नमन।

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    Replies
    1. जी आपकी इतनी सराहनीय प्रतिक्रिया के लिए बहुत शुक्रिया आभार आपका।
      आशा है आप यूँ ही उत्साहवर्धन करते रहेगे।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।