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Saturday, 17 June 2017

मौन

बस शब्दों के मौन हो जाने से
न बोलने की कसम खाने से
भाव भी क्या मौन हो जाते है??
नहीं होते स्पंदन तारों में हिय के
एहसास भी क्या मौन हो जाते है??

एक प्रतिज्ञा भीष्म सी उठा लेने से
अपने हाथों से स्वयं को जला लेने से
बहते मन सरित की धारा मोड़ने से
उड़ते इच्छा खग के परों को तोड़ने से
नहीं महकते होगे गुलाब शाखों पर
चुभते काँटे मन के क्या मौन हो जाते है??

ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
न कहने से अधरों पे आयी बात को
पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??

       #श्वेता🍁

8 comments:

  1. मन भावों की कोमल और सुंदर रचना ।

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    1. बहुत आभार शुक्रिया आपका पम्मी जी।

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    1. बहुत आभार शुक्रिया लोकेश जी।

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  3. बहुत ही बेमिसाल। अद्भुत। अनुपम। बिहंगम। विस्मयकारी रचना ज़ज़्बातों की स्याही में डुबोकर अंतर्मन के पटल पर उकेरी है आपने।

    साधारणतया इस प्रकार की रचना देखने मे नही आती। शिद्दत से मोहब्बत के उमड़ते घुमड़ते भावों को निचोड़ा जाये तो ऐसी बातें लिखीं जा सकतीं हैं।

    एक बेमिसाल रचना के लिए आपको बहुत बहुत बधाई। शुभ रात्रि।

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    1. जी आप सदैव ही मेरी रचनाओं के लिए ऐसे सुंदर विशेषात्मक प्रतिक्रिया का प्रयोग कर मुझे आहृलादित करते है।आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए बहुत आभार शुक्रिया आपकी शुमकामनाओ़ के लिए अनेको धन्यवाद आपका।

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  4. ख्वाबों के डर से न सोने से रात को
    न कहने से अधरों पे आयी बात को
    पलट देने से ज़िदगी किताब से पन्ने
    न जीने से हाथ में आये थोड़े से लम्हें
    वेदना पी त्याग का कवच ओढकर
    अकुलाहट भी क्या मौन हो जाते है??

    वाह ! क्या बात है सुन्दर ,कोमल भावनाओं से सजी रचना आभार। "एकलव्य"

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    1. जी आभार आपका बहुत सारा शुक्रिया।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।