Pages

Friday, 16 June 2017

एक बार फिर से

मैं ढलती शाम की तरह
तू तनहा चाँद बन के
मुझमे बिखरने आ जा
बहुत उदास है डूबती
साँझ की गुलाबी किरणें
तू खिलखिलाती चाँदनी बन
मुझे आगोश मे भरने आजा
दिनभर की मुरझायी कली
कोर अब भींगने  लगे
भर रातरानी की महक
हवा बनके लिपटने आजा
परों को समेट घर लौटे
परिदें भी अब मौन हुए
तू साँझ का दीप बन जा
मन मे मेरे जलने आ जा
सारा दिन टटोलती रही
सूने अपने दरवाजे को
कोई संदेशा भेज न
तू आँखों मे ठहरने आजा
बेजान से फिरते है
बस तेरे ख्याल लिए
एहसास से छू ले फिर से
धड़कनों मे महकने आजा

     #श्वेता🍁


12 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 जून 2017 को लिंक की गई है...............http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 18 जून 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत शुक्रिया आभार आपका दी।

      Delete
  3. वाह!!!
    बहुत सुन्दर...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत आभार शुक्रिया सुधा जी।

      Delete
  4. मिलन की प्यास तृप्त हो सके तो मन ऐसी कल्पनाऐं करता है और ह्रदय को गुदगुदाता है तब मोहक शब्दों की कड़ियाँ "एक बार फिर " के रूप में उभरती हैं हमें ऊँचे आसमान में उड़ान भरने के लिए। श्वेता जी के बिषय वही हैं जो हम सबके जीवन से टकराते हैं लेकिन शब्दों का चयन और उनमें भाव -गाम्भीर्य की चाशनी भर देना इनके सृजन का अनूठापन है। मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ ताकि पाठक ह्रदय को स्पर्श करती रचनाओं का वाचन कर अपने अंतःकरण को सुकून भी पहुँचायें। बधाई श्वेता जी। धन्यवाद यशोदा जी ऐसी माधुर्य और लाळिल्य से परिपूर्ण रचना पेश करने के लिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. रवींद्र जी रचनाओं की विवेचनात्मक व्याख्या में आपका जवाब नहीं अतुलनीय प्रतिक्रिया होती है आपकी।आपकी मनमोहक टिप्पणी के लिए सदैव आभार शुक्रिया आपका रवींद्र जी।

      Delete
  5. मिलन की प्यास तृप्त हो सके तो मन ऐसी कल्पनाऐं करता है और ह्रदय को गुदगुदाता है तब मोहक शब्दों की कड़ियाँ "एक बार फिर " के रूप में उभरती हैं हमें ऊँचे आसमान में उड़ान भरने के लिए। श्वेता जी के बिषय वही हैं जो हम सबके जीवन से टकराते हैं लेकिन शब्दों का चयन और उनमें भाव -गाम्भीर्य की चाशनी भर देना इनके सृजन का अनूठापन है। मैं ऐसा इसलिए लिख रहा हूँ ताकि पाठक ह्रदय को स्पर्श करती रचनाओं का वाचन कर अपने अंतःकरण को सुकून भी पहुँचायें। बधाई श्वेता जी। धन्यवाद यशोदा जी ऐसी माधुर्य और लाळिल्य से परिपूर्ण रचना पेश करने के लिए।

    ReplyDelete
  6. प्रेम की पींगें और मिलन का एहसास बहुत कुछ कल्पनाओं को सक्रीय कर जाता है ... फिर यही कल्पनाएँ सुन्दर शब्दों को जन्म दे देती हैं ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका नासवा जी।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।