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Thursday, 15 June 2017

पापा

पापा,घने, विशाल वट वृक्ष जैसे है
जिनके सघन छाँह में,
हम बनाते है बेफ्रिक्र होकर
कच्चे पक्के जीवन के घरौंदे
और बुनियाद में रखते है
उनके अनुभवों की ईंट,
पापा के मजबूत काँधे पर चढ़कर
आसमान में उड़ने का स्वप्न देखते है
इकट्ठे करते है सितारे ख्वाहिशों के
और पापा की जेब में भर देते सारे,
उनके पास दो जादू भरे हाथ होते है
जिसमें पकडकर अनुशासन,
स्नेह और सीख की छेनी हथौड़ी
वो तराशते है बच्चों के
अनगिनत सपनों को,
अपने हृदय के भाव को
व्यक्त नहीं करते कभी पापा
सहज शांतचित्त गंभीर
ओढ़कर आवरण चट्टान का
खड़े रहते है हमसे पहले
हमारे छोटी से छोटी परेशानी में
कोई नहीं जानता पापा की
सोयी इच्छाओं के बाबत
क्योंकि पापा जीते है हमारे
अतीत, वर्तमान और भविष्य,
की कामनाओं को
पापा की उंगली पकड़कर
जब चलना सीखते है
हम भूल जाते है
जीवन राह के कंटकों को
डर नहीं लगता जग के
बीहड़ वन की भयावहता में
दिनभर के थके पापा के पास
लोरियाँ नहीं होती बच्चों को
सुलाने के लिए
पर उनकी सबल बाहों के
आरामदायक बिस्तर पर
चिंतामुक्त नींद आती है
पापा वो बैंक है
जिसमें जमा करते है
अपनी सारे दुख, तकलीफ,
परेशानी,ख्वाहिशें और अनगिनत आशाएँ,
और बदले में पाते है एक निश्चत
चिरपरिचित विश्वास ,सुरक्षा घेरा
और अमूल्य सुखी जीवन
की सौगात उनके आशीष के रूप मे।
    #श्वेता🍁

9 comments:

  1. बहुत खूबसूरत और मर्मस्पर्शी रचना। बिल्कुल ' मन के पाखी' को चरितार्थ करने वाली। बधाई श्वेताजी।

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    1. जी बहुत बहुत शुक्रिया आभार आपके सुंदर प्रतिक्रिया के लिए।आपकी शुभकामनाओं की कांक्षा सदैव करते है।आभार आपका विश्व मोहन जी।

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  2. मां के आंचल में सिमटती पूर्ण धरा का अहसास है तो पिता के बाजुओं में खुलता हुआ सा सारा आकाश। दोनो का अजब गजब से रिश्ता। मेरी मां के आंचल से अभी भी मीठी सी, दूध भात की भीनी खुशवू तो पिता की पेशानी में पलते ढलते पसीने की। साल भर में तो मन का नेह तो पिता की छुटियों में घर आने की आस। कुछ भी तो दूर नही यहीं सीने में बाईं तरफ धड़कता है। परमात्मा सब के माता पिता को सलामत रखे।

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    1. सुंदर भावनात्मक टिप्पणी के लिए बहुत आभार शुक्रिया आपका महोदय।

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  3. मां के आंचल में सिमटती पूर्ण धरा का अहसास है तो पिता के बाजुओं में खुलता हुआ सा सारा आकाश। दोनो का अजब गजब से रिश्ता। मेरी मां के आंचल से अभी भी मीठी सी, दूध भात की भीनी खुशवू तो पिता की पेशानी में पलते ढलते पसीने की। साल भर में तो मां का नेह तो पिता की छुटियों में घर आने की आस। कुछ भी तो दूर नही यहीं सीने में बाईं तरफ धड़कता है। परमात्मा सब के माता पिता को सलामत रखे।

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  4. श्वेता जी
    आपकी कविता पढ़कर मन अभिभूत हो गया ,
    ............बहुत सुन्दर अहसास , बधाई

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी।आपकी प्रतिक्रिया सदैव उत्साहित करती है लिखने के लिए।बहुत धन्यवाद आपकी शुभकामनाओं के लिए।

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  5. मार्मिक तथा सत्यतापूर्ण कविता

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  6. मार्मिक तथा सत्यतापूर्ण कविता

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शुक्रिया।