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Friday, 30 June 2017

बचपन

बचपन का ज़माना बहुत याद आता है
लौटके न आये वो पल आँखों नहीं जाता है

न दुनिया की फिक्र न ग़म का कहीं जिक्र
यादों में अल्हड़ नादानी रह रहके सताता है

बेवज़ह खिलखिलाना बेबाक नाच गाना
मासूम मुस्कान को वक्त तड़प के रह जाता है

परियों की कहानी सुनाती थी दादी नानी
माँ के आंचल का बिछौना नहीं मिल पाता है

हर बात पे झगड़ना पल भर में मान जाना
मेरे दोस्तो का याराना बहुत याद आता है

माटी में लोट जाना बारिश मे खिलखिलाना
धूप दोपहरी के ठहकों से मन भर आता है

अनगिनत याद में लिपटे असंख्य हीरे मोती
मुझे अनमोल ख़जाना बहुत याद आता है

क्यूँ बड़े हो गये दुनिया की भीड़ में खो गये
मुखौटे लगे मुखड़े कोई पहचान नहीं पाता है

लाख मशरूफ रहे जरूरत की आपाधापी में
बचपना वो निश्छलता दिल भूल नहीं पाता है

      #श्वेता🍁



11 comments:

  1. सही कहा श्वेता जी बचपन से सुंदर कुछ भी नहीं
    बहुत सुन्दर ।

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    1. बहुत बहुत आभार आपका रितु जी।

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  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 02 जुलाई 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय। मेरी रचना को मान देने के लिए बहुत धन्यवाद आपका।

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  3. हर बात पे झगड़ना पल भर में मान जाना
    मेरे दोस्तो का याराना बहुत याद आता है
    बहुत से अहसास ऐसे होते हैं जो शब्दों की सीमा में नहीं बंधते .....सुन्दर पोस्ट|
    आपके ब्लॉग पर आकर तो मै एकदम भावूक हो जाता हूँ

    सादर
    संजय भास्कर

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    1. आपका बहुत बहुत आभार शुक्रिया संजय जी,
      आपके सराहनीय शब्द हमेशा एक नयी ऊर्जा प्रदान करते है।

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  4. बहुत ही सुन्दर...।
    बचपन के खूबसूरत एहसास की सुन्दर शब्द रचना.....
    वाह!!!
    लाजवाब...

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  5. बचपन हर गम से बेगाना होता है

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  6. बचपन की यादें ताज़ा करती बेहतरीन ग़ज़ल। बचपन पर क़लम चलाने के लिए हार्दिक धन्यवाद श्वेता जी। भावुकता की ओर ले जाते ख़ूबसूरत लफ्ज़। बधाई एवं शुभकामनाऐं !

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  7. बचपन की यादों को तरोताजा करती बेहतरीन रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।