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Wednesday 12 July 2017

बुलबुले

जीवन के निरंतर
प्रवाह में
इच्छाएँ हमारी
पानी के बुलबुले से
कम तो नहीं,
पनपती है
टिक कर कुछ पल
दूसरे क्षण फूट जाती है
कभी तैरती है
बहाव के सहारे
कुछ देर सतह पर,
एकदम हल्की नाजुक
हर बार मिलकर जल में
फिर से उग आती है
अपने मुताबिक,
सूरज के
तेज़ किरणों को
सहकर कभी दिखाती है
इंद्रधनुष से अनगित रंग
ख्वाहिशों का बुलबुला
जीवन सरिता के
प्रवाह का द्योतक है,
अंत में सिंधु में
विलीन हो जाने तक
बनते , बिगड़ते ,तैरते
अंतहीन बुलबुले
समय की धारा में
करते है संघर्षमय सफर।

  श्वेता🍁


6 comments:

  1. बहुत खूबसूरत अशआर
    सुंदर रचना

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    1. जी, आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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  2. जीवन बुलबुला ही है यदि श्रृष्टि के लम्बे अंतराल में देखा जाये ... और सपने भी बुलबुले हैं ... पनपते हैं फूट जाते हैं पल के अन्दर ...

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    1. जी नासवा जी, सही कहा आपने शुक्रिया आभार आपका बहुत सारा।

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  3. पानी के बुलबुलों सा जीवन...
    बहुत खूब...
    अन्त में सिन्धु में विलीन हो जाने तक बनते बिगड़ते तैरते
    सटीक.... यही तो करता है जीवन, मृत्यु में विलीन होने तक....
    लाजवाब...

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    1. जी, सुधा जी रचना का मनतंव्य समझने.के लिए शुक्रिया आभार आपका बहुत सारा। हृदय से धन्यवाद जी।

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शुक्रिया।