तुम हो मेरे बता गयी आँखें
चुप रहके भी जता गयी आँखें
छू गयी किस मासूम अदा से
मोम बना पिघला गयी आँखें
मोम बना पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से हासिल लाली
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
लब पे बिखर लजा गयी आँखें
बोल चुभे जब काँटे बनके
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
गम़ में डूबी नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन बौरा गयी आँखें
मन ही मन बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये तुम बिन साजन
कैसा रोग लगा गयी आँखें
कैसा रोग लगा गयी आँखें
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
शुभ संध्या..
ReplyDeleteअपनी फोटो क्यों हटा दी
लीजिए पढ़िए अपनी रचना...
.....
तुम हो मेरे
बता गयी
आँखें चुप रहके
जता गयी आँखें
छू गयी
किस मासूम अदा से
मोम बना
पिघला गयी आँखें
रात के ख्वाब से
हासिल लाली
लब पे बिखर
लजा गयी आँखें
बोल चुभे
जब काँटे बनके
गम़ में डूबी
नहा गयी आँखें
पढ़ एहसास की
सारी चिट्ठियाँ
मन ही मन
बौरा गयी आँखें
कुछ न भाये
तुम बिन
साजन कैसा
रोग लगा गयी आँखें
#श्वेता🍁
हा हा हा दी वो सुंदर नहीं लग रही थी।
Deleteबहुत बहुत आभार दी आपके ढेर स्नेह के लिए:))
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार लोकेश जी, शुक्रिया तहेदिल से:)
Deleteबेहतरीन रचना ,वाह !
ReplyDeleteक्या कहने को आतुर
क्या कह गईं आँखें
सोते हुए सपनों में
क्यूँ जगा गईं आँखें
हम तो चले थे कुछ ख़्वाब संजोए
सच का आईना
दिखा गईं आँखें
बहुत सूंदर रचना ,आभार
"एकलव्य"
अरे वाह्ह्ह ध्रुव जी क्या खूब लिखा आपने,
Deleteबहुत सुंदर 👌👌👌
आपकी त्वरित प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी:))
बहुत बहुत आभार आपका हृदय तल से।
बहुत ही बढ़िया रचना, स्वेता।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार ज्योति जी।
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