Pages

Wednesday, 13 September 2017

हिंदी

बचपन से जाना है हिंदी
भारत के भाल पर बिंदी
राष्ट्र की खास पहचान
हिंदी भाषी अपना नाम
गोरो ने जो छोड़ी धरोहर
उसके आगे हुई है चिंदी
हिंदी भाषा नहीं भाव है
संस्कृति हमारी चाव है
सबको एक सूत्र में जोड़े
कश्मीरी हो या हो सिंधी
न रोटी में न मान है मिलता
शर्म से शीश नवाये छिपता
सभ्य असभ्य के बीच दीवार
खींच दे रेखा अपनी हिंदी
बूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
पुण्य तिथि पर करेंगें याद
थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी
न जाने अंग्रेज़ी तो अपमान है
देश में हिंदी की कैसी  शान है
न लौटेंगे दिन वो सुनहरे फिर
जब कभी गर्व से कह पाये हम
हिंदी भारत के माथे की बिंदी

       #श्वेता🍁

37 comments:

  1. बहुत बहुत सुंदर रचना श्वेता जी। बहुत खूब।

    बूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
    पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
    पुण्य तिथि पर करेंगें याद
    थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी।

    सुंदर कटाक्ष।।

    ReplyDelete
    Replies
    1. आभार आभार अति आभार आपका अमित जी तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  2. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" गुरुवार 14 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया दी।

      Delete
  3. बहुत सुंदर रचना श्वेता जी, हिंदी की गरिमा हिंदी भाषी ही भूल रहे हैं. सवाल ये है कि हमे ये हिंदी दिवस या उसके आस पास के दिनो में ही याद आता है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका अपर्णा जी।

      Delete
  4. बहुत ही बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार एवं शुक्रिया आपका लोकेश जी।

      Delete
  5. बहुत सुंदर रचना श्वेता जी, हिंदी की गरिमा हिंदी भाषी ही भूल रहे हैं. सवाल ये है कि हमे ये हिंदी दिवस या उसके आस पास के दिनो में ही याद आता है.

    ReplyDelete
  6. श्वैता जी,
    सब बढिया. गुस्ताखी माफ.. हिंदी न कभी राष्ट्रभाषा रही न अभी है. आवश्यक.समझें तो सुधार लें हिंदी राजभाषा मात्र है.

    ReplyDelete
    Replies
    1. रंगराज जी,
      संवैधनिक तौर पर हिंदी को राजभाषा और राष्ट्रभाषा का दर्जा दिया गया क्योंकि यह देश के अधिकांश भागों में बोली और समझी जाती है।
      अति आभार आपका।

      Delete
    2. श्वेता जी, समय मिलने पर पुनः जाँच लें. हिंदी राष्ट्रभाषा नहीं है. संविधान में यह शब्द है ही नहीं.
      तकलीफ हेतु क्षमाप्रार्थी.

      Delete
    3. कभी इस विशेष पर अलग से विस्तृत चर्चा करेंगे. आपकी रचना को ज्यादा खराब न करें तो बेहतर होगा न. धन्यवाद

      Delete
  7. न जाने अंग्रेजी तो अपमान है
    देश में हिंदी की कैसी शान है
    न लौटेगें दिन वो सुनहरे फिर
    जब कभी गर्व से कह पाये हम
    हिंदी भारत के भाल की बिंदी है
    वाह!!!
    सटीक.... आजकल अंग्रेज़ी भाषी न होने पर वाकई अपमानित महसूस करते है...
    हिन्दी हीनभावना बन रही है...अपनी हिंदी की ऐसी दुर्दशा.... बहुत ही लाजवाब...

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी,सुधा जी बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया आपकी सुंदर सुलझी प्रतिक्रिया के लिए।

      Delete
  8. हिंदी-दिवस की पूर्व संध्या पर सुंदर,विचारणीय अभिव्यक्ति।
    यह कटाक्ष मातृभाषा के प्रति हमारी उथली सोच पर प्रहार करता है।
    निस्संदेह भारत की संपर्क भाषा हिंदी है फिर भी राष्ट्रभाषा का संवैधानिक दर्ज़ा हासिल करने में अब तक विफल क्यों है?
    भाषा से हमारा भावनात्मक लगाव होता है जोकि उसके संवर्धन और संरक्षण के लिए हमें सदैव सजग रखता है।
    अन्य भाषाओं के साथ तालमेल और नवीनतम शब्दावली की ग्राह्ता ज़रूरी है किसी भी भाषा के समृद्ध होने के लिए।
    आपको बधाई एवं शुभकामनाऐं हिंदी-दिवस (14 सितम्बर) के मद्देनज़र विचारशील रचना प्रस्तुत करने के लिए।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी,तहेदिल से बहुत शुक्रिया आपका।
      आपके सुंदर सारगर्भित मंतव्य के लिए आभारी है हम।
      आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदयतल से आभार।

      Delete
  9. आदरणीय रंगराज जी,
    व्यक्तिगत और सामूहिक तौर पर हिंदी भाषी लोग हिंदी को ही राष्ट्र भाषा मानते है।भले ही यह संवैधानिक तौर पर लागू न हो अब तक।
    स्वतंत्रता के बाद किये गये प्रावधानों में यह लिखा जाना कि अगले 15 वर्षों तक अंग्रेजी राजभाषा (संपर्क भाषा) के रूप में चलती रहेगी और इसके बाद हिंदी को पूर्णतः राष्ट्रभाषा का दर्जा दे दिया जाएगा। महज इसलिए प्रावधान स्वरूप रखा गया ताकि 15 वर्षों में अहिंदी भाषा क्षेत्र के लोग हिंदी सीख ले, पर ऐसा नहीं हुआ, और हम आज भी अपनी मातृभाषा को राष्ट्रभाषा का सम्मानजनक स्थान नहीं दिला पाए। हमारी राष्ट्रभाषा समिति में शामिल हमारे देश के कर्णधारों ने एक और बंटाधार संविधान के अनुच्छेद 343 (3) में कर दिया और यह उल्लेखित और कलमबद्ध कर दिया गया कि उक्त 15 वर्ष की अवधि के पश्चात भी संसदविधि द्वारा अंग्रेजी भाषा का प्रयोग ऐसे प्रयोजनों के लिए कर सकेगी, जैसा की विधि में उल्लेखित हो।
    किंतु हम प्रबुद्ध जनों का यह दायित्व बनता है कि हम हम अपनी संपर्क भाषा के प्रति कैसा दृष्टिकोण रखते है।हिंदी तो ठीक से राजभाषा भी नहीं बन पायी है,अगर अपनी मातृभाषा के सम्मान.में हम हिंदी राष्ट्र भाषा क संबोधन देते है तो क्या बुरा है,आपकी बातों से सहमत होते हुये भी व्यक्तिगत तौर पर ये मेरा मानना है कि हिंदी राष्ट्र भाषा है।

    ReplyDelete
    Replies
    1. This comment has been removed by the author.

      Delete
    2. http://www.hindikunj.com/2017/09/national-language-hindi.html?m=1

      Delete
    3. आदरणीय अयंगर जी आपके हिंदी संबंधी ज्ञान का मैं मुरीद हूँ। हिंदी-भाषियों को जानने और समझने योग्य जानकारी से भरा आपका बेबाकी दर्शाता सारगर्भित आलेख मुझे बहुत पसंद आया। एक अहिन्दी भाषी लेखक का प्रामाणिक हिंदी पर उल्लेखनीय असर हमें बार-बार सोचने पर विवश करता है कि देश में अहिन्दी भाषी तो हिंदी सीखते हैं किन्तु हिंदी भाषियों ने कितनी अन्य भारतीय भाषाओँ को सीखा ? आपने अपने लेख में विस्तार से हिंदी के संवैधानिक दर्ज़े पर चर्चा की है। भावनात्मक रूप से हिंदी भाषी हिंदी को राष्ट्रभाषा मानते हैं किन्तु उसे अब तक क़ानूनी दर्ज़ा नहीं मिल पाया है जोकि संविधान द्वारा प्रदान किया जायेगा। अतः हिंदी बेशक अब तक राजभाषा ही है। बहुत धन्यवाद इस विचारणीय श्रम के लिए।
      आदरणीय श्वेता सिन्हा जी के अपनी रचना "हिंदी"( मन के पाखी पर 13 -09 -2017) में हिंदी को राष्ट्रभाषा कहे जाने के भावनात्मक रुझान को आपने तथ्यपरक तर्कों से स्पष्ट किया है।

      Delete
  10. बहुत खूब रचना आपकी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत स्वागत है गायत्री जी आपका ब्लॉग पर।आभार आपका।

      Delete
  11. Goron ki angrejiyat ko ek din hindi chunauti degi
    har hindustani k mastak par hai aur wahin rahegi.
    khubsurat udgar vyakt kiye sadhuwad!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अभि जी।

      Delete
  12. बेहद खूबसूरत .......,

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका मीना जी।

      Delete
  13. बहुत सुंदर,विचारणीय अभिव्यक्ति।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से.शुक्रिया पम्मी जी।

      Delete
  14. आदरणीय श्वेता जी ----- मर्मान्तक शब्दों में उपेक्षित हिंदी की दशा को आपने कह डाला |
    न जाने अंग्रेजी तो अपमान है
    देश में हिंदी की कैसी शान है
    न लौटेगें दिन वो सुनहरे फिर
    जब कभी गर्व से कह पाये हम
    हिंदी भारत के भाल की बिंदी है।
    -------- बहुत ही बढ़िया !!!!!!!!!!

    ReplyDelete
    Replies
    1. आदरणीय रेणु जी,
      आपकी सुंदर ऊर्जावान पंक्तियाँ के लिए तहेदिल से बहुत बहुत आभार।नेह बनाए रखें कृपया।

      Delete
  15. हम सबसे जितना बन पड़ेगा हम करेंगे श्वेता जी। आखिर हिंदी हमारे प्राणों में बहती है । आपने तो मेरे मन की पीड़ा को शब्द दे दिए....
    बूढ़ी हो गयी है राष्ट्रभाषा
    पूछ रहे अंतिम अभिलाषा
    पुण्य तिथि पर करेंगें याद
    थी सबसे प्यारी अपनी हिंदी !

    ReplyDelete
    Replies
    1. मीना जी,आपके हृदय के सच्चे उद्गार आपके शब्दों में झलक रही है।बहुत बहुत आभार सस्नेह शुक्रिया आपका।

      Delete
  16. आज भी संवैधानिक तौर पर हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा न भी मिला हो लेकिन यह आज जन-जन की भाषा हैं और आने वाले दिनों में इंटर्नेट के माध्यम से इसका और प्रचार संभावित ही हैं। ऐसे में एक न एक दिन जरुर ये संवैधानिक तौर पर राष्ट्रभाषा का दर्जा हासिल करेंगी।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति स्वेता!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी,ज्योति जी सही कहा आपने,बहुत आभार आपका आपके विचार बहुत स्पष्ट है।तहेदिल से शुक्रिया जी।

      Delete
  17. हिन्दी की व्यथा को दर्शाती खूबसूरत रचना ! बहुत खूब आदरणीया ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अति आभार आपका सर।तहेदिल से बहुत शुक्रिया।

      Delete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।