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Tuesday 26 September 2017

समन्दर का स्वप्न

चित्र साभार-गूगल

मौन होकर
अपलक ताकते हुये
मचलती  ख़्वाहिशों  के,
अनवरत ठाठों से व्याकुल 
समन्दर अक्सर स्वप्न देखता है।
खारेपन को उगलकर
पाताल में दफ़न करने का,
मीठे दरिया सा 
लहराकर हर मर्यादा से परे
इतराकर बहने का स्वप्न।
बाहों में भरकर
आसमान के बादल
बरसकर माटी के आँचल में
सोंधी खुशबू बनकर 
धरा के कोख से
बीज बनकर फूटने का स्वप्न
लता, फूल, पेड़
की पत्तियाँ बनकर
हवाओं संग बिखरने का स्वप्न।
रंगीन मछलियो के
मीठे फल कुतरते
खगों के साथ हंसकर
बतियाने का स्वप्न।
चिलचिलाती धूप से आकुल
घनी दरख़्तों के
झुरमुट में शीतलता पाने का स्वप्न।
अपने सीने पर ढोकर थका
गाद के बोझ को छोड़कर
पर्वतशिख बन
गर्व से दिपदिपाने का स्वप्न।
मरूभूमि की मृगतृष्णा सा
छटपटाया हुआ समन्दर
घोंघें,सीपियों,शंखों,मोतियों को
बदलते देखता है
फूल,तितली,भौरों और परिंदों में,
देखकर थक चुका है परछाई
झिलमिलाते सितारें,चाँद को
उगते,डूबते सूरज को
छूकर महसूस करने का स्वप्न देखता है
आखिर समन्दर बेजान तो नहीं
कितना कुछ समाये हुये
अथाह खारेपन में,
अनकहा दर्द पीकर
जानता है नियति के आगे 
कुछ बदलना संभव नहीं
पर फिर भी अनमने
बोझिल पलकों से
समन्दर स्वप्न देखता है।

   #श्वेता सिन्हा



30 comments:

  1. अच्छी परिकल्पना.

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    1. अति आभार आपका रंगराज जी।

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  2. अच्छी परिकल्पना.

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    1. आपके आशीर्वचनों के लिए तहेदिल से शुक्रिया आपका रंगराज जी।

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  3. सरल और सहज ढंग से भावो को अभिव्यक्त करती है आपकी रचना.. बहुत बढिया।

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    1. अति आभार आपका पम्मी जी,तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

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  4. समुन्दर की परिकल्पना बहुत खूब

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    1. बहुत बहुत आभार रितु जी।

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  5. समुन्दर की परिकल्पना बहुत खूब

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    1. तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा रितु जी।

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  6. सुन्दर कविता
    जी चाहता है चुरा लूँ
    सादर

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    1. जी दी:))
      आपका पूरा अधिकार है ले लीजिए न।
      आपक अतुल्य नेह के लिए क्या कहे शुक्रिया।
      स्नेह बना रहे आपका बस।

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  7. बहुत ही सुंदर

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    1. खूब सारा आभार लोकेश जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  8. वाह ... कवी की कल्पना का जवाब नहीं ... समुद्र की सोच का भी जवाब नहीं ... कितना कुछ संजोये ... तूफानी पर शांत ऊपर से ...

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    1. जी नासवा जी,बहुत कुछ छुपा होता है समन्दर के सीने में।खूब सारा आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  9. वाह !
    ख़ूबसूरत स्वप्न है समुंदर का।
    ज़माने में सबके अपने-अपने दायरे हैं ,सीमाऐं हैं ,मर्यादाऐं भी हैं।
    समुंदर का यों ख़ामोश रहकर प्रकृति की व्यापकता का विस्तार होने देना ही उत्तम है।
    स्वप्न और फैंटेसी मन की कल्पनाऐं हैं जो हमें प्रकृति की सर्वोत्कृष्ट कृति होने का सुखद एहसास कराते हैं।
    आपका कल्पनालोक साहित्य को समृद्ध कर रहा है।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    1. जी रवींद्र जी,
      दायरा और सीमा के बंधनों से मुक्त होकर ही तो स्वप्न देखा जाता है न।
      आभार आपकी सुंदर प्रोत्साहित करती प्रतिक्रिया के लिए। आपकी शुभकामनाओं का साथ सदा अपेक्षित है कृपया बनाये रखे।

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  10. आपका लेखन इतना सुघड़ होता है कि हैरत होती है। मानो तसव्वुर का एक अथाह समंदर आपके ह्रदय के अंदर ठाठें मार रहा हो। समंदर की उन्मत्त लहरों की यह गुनगुनाहट लुत्फ़ से तर कर रही है, हैरत से भर रही है। बेहद दिलकश

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    1. आपकी सुंदर शब्दों में दी गयी प्रतिक्रिया ने रचना को और सुंदर बना बना दिया।
      अति आभार आपका अमित जी,तहेदिल से खूब सारा शुक्रिया जी।

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  11. Replies
    1. जी आभार आपका अभि जी।

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  12. समुद्र‎ की कल्पना‎ को बड़ी‎ कुशलता से चित्रित‎ किया है श्वेता जी .

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    1. अति आभार आपका मीना जी,तहेदिल से शुक्रिया सस्नेह।

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  13. बहुत सुंदर और सहज अभिव्यक्ति.

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    1. अति आभार आपका राजीव जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  14. समुंदर का स्वप्न...वाहहह...इतनी सशक्त कल्पना तो शायद समुंदर भी वास्तव में न कर पाए! बहुत सुंदर प्रस्तुति, स्वेता!

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    1. अति आभार आपका ज्योति जी।आपके नेह युक्त शब्दों से रचना की सुंदरता द्विगुणित हुई।

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  15. नए शब्दों से परिचय हुआ .......मिलकर अच्छा
    लगा !
    सुंदर रचना रची है आपने...

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    1. अति आभार आपका संजय जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।