सृष्टि के सृजन का अधिकार
प्रभु रूप सम एक अवतार
नारी हूँ मैं धरा पर बिखराती
कण कण में खुशबू, सुंगध बहार,
आदर्श और नियमोंं के जंजीरों में
पंख बाँधे गये घर की चौखट से
अपनों की खुशियों को रोपती हूँ
हर दिन तलाशती अपना आधार
हर युग में परीक्षा मेरे अस्तित्व की है
सीता मैं राम की,अग्नि स्नान किया
द्रौपदी मैं,बँटी वस्तु सम पाँच पुरुष में
मैं सावित्री यम से ले आयी पति प्राण,
शक्ति स्वरूपा असुर निकंदनी मैं माता
मंदोदरी, अहिल्या तारा सती विख्याता
कली, पुष्प ,बीज मैं ही रूप रंग श्रृंगार
मेरे बिन इस जग की कल्पना निराधार,
मैं भोग्या वस्तु नही, खिलौना नहींं
मैं मुस्काती,धड़कती जीवन श्वाास हूँ
साँस लेने दो,उड़ने को नभ दो मुझे
नारी हूँ मैं चाहती जीने का सम आधार,
न पूजो मुझे बस नवरात्रों में ही
रखकर मान हृदय में स्थान दो
मसल कर रख दोगे नन्ही कली गर
कैसे रचा पाऊँगी मैं सुंदर संसार।
नारी की गरिमा को बहुत खूबसूरती से उकेरा है श्वेता जी. अत्यन्त सुन्दर रचना .
ReplyDeleteअति आभार मीना जी,आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए शुक्रिया खूब सारा।
Deleteवाह प्रत्येक बंध उम्दा
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत रचना
अति आभार आपका लोकेश जी,आपकी कम शब्दों में की गयी सराहना सदैव बहुत कुछ.बोलती सी मनोबल बढ़ा जाती है।
Deleteतहेदिल से खूब सारा शुक्रिया आपका लोकेश जी।
हर युग में परीक्षा मेरे अस्तित्व की है
ReplyDeleteसीता मैं राम की,अग्नि स्नान किया
द्रौपदी मैं,बँटी वस्तु सम पाँच पुरुष में
मैं सावित्री यम से ले आयी पति प्राण,...... वाह! बहुत सुन्दर! प्रशंसा शब्दों से परे!माँ आपकी लेखनी पर सर्वदा विराजे !!!
दुर्गाष्टमी पर्व पर आपकी यह प्रस्तुति परिवेश की सरगम-सी है जिसमें भावातिरेक झलक रहा है जोकि सामयिक परिस्थिजन्य आक्रोश को भी प्रवाहित करता है।
ReplyDeleteमुखरित होकर स्त्री को अपना आसमान तय करना होगा।
समयानुकूल जीवन को व्यापकता देने वाले मूल्यों को सृजित करना होगा।
पुरुषसत्ता को अपनी अहमियत से प्रभावित करना होगा ताकि सद्भावना के बंद द्वार खुल सकें।
स्त्री गरिमा और जटिलताओं से भरे जीवन पथ की गाथा बन गयी है आपकी रचना जोकि निस्संदेह ज़ेहनियत पर प्रहार करती है।
आपको ढेरों बधाइयाँ और मंगलकामनाऐं दुर्गाष्टमी के पावन पर्व पर।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 29 सितम्बर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबेहतरीन ..
ReplyDeleteनारी के अंतरमन को बखूबी से प्रस्तुत करती रचना.
नारी के वास्तविक सत्य को उजागर करती रचना ।
ReplyDeleteशक्ति स्वरूपा असुर निकंदनी मैं माता
ReplyDeleteमंदोदरी, अहिल्या तारा सती विख्याता
कली, पुष्प ,बीज मैं ही रूप रंग श्रृंगार
मेरे बिन इस जग की कल्पना निराधार।
Wahhhhh। नारी के अंतर्मन का विराट गान। बहुत सुघड़ और प्रभावी रचना। ऐसे अर्थपरक सुंदर बन्ध, कि कण कण में फैली सुगन्ध।
मै भोग्या वस्तु नहीं ,खिलौना नहीं
ReplyDeleteमै मुस्काती,धड़कती जीवन श्वास हूँ....
नारी हूँ मैं.....बहुत ही लाजवाब....
नारी के बिना जग की कल्पना निराधार ही है....बहुत ही सटीक सार्थक अभिव्यक्ति...
वाह!!!!
मेरा ब्लॉग नजर आता है क्या ?
Deleteआपके ब्लॉग के पते में कुछ गलत है लगता है । नजर नहीं आ रहा है ।
Deleteमेरा ब्लॉग नजर आ रहा है क्या ?
ReplyDeletewww.kavibhyankar.blogger.com आपके प्रोफाइल पर पहुँचा रहा है। बलॉग पता दीजिये।
Deleteनारी के अंतर्मन ... उसकी गरिमा को शब्द दिए हैं रचना ने ,,,,
ReplyDeleteबहुत लाजवाब ...
बहुत सुन्दर।
ReplyDeleteन पूजो मुझे बस नवरात्रों में ही
ReplyDeleteरखकर मान हृदय में स्थान दो
मसल कर रख दोगे नन्ही कली गर
कैसे रचा पाऊँगी मैं सुंदर संसार।
नारी मन का बहुत ही सुंदर विवेचन किया है आपने।
विहंगम संयोजन है शब्दों का।
ReplyDeleteसुंदर भावाव्यक्ति।
" नारी पर आधारित श्रेष्ठ रचना , नारी के अंतर्मन एवं उसकी चाह को मुखर ब्द देती सुन्दर कविता " आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2017/10/37.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमसल कर रख दोगे नन्ही कली गर
ReplyDeleteकैसे रचा पाऊँगी मैं सुंदर संसार।
नारी मन का बहुत ही सुंदर विवेचन किया है आपने।
बहुत सुंदर रचना.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना.
ReplyDeletehttps://girijeshthepoet.blogspot.in/search?q=woman
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