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Thursday, 7 September 2017

मोहब्बत की रस्में

*चित्र साभार गूगल*

मोहब्बत की रस्में अदा कर चुके हम
मिटाकर के ख़ुद को वफ़ा कर चुके हम

इबादत में कुछ और दिखता नहीं है

सज़दे में उन को ख़ुदा कर चुके हम

ये  कैसी  ख़ु
मारी  में  भूले  ज़माना
कितनों को जाने खफ़ा कर चुके हम

बड़े बेरहम,बेमुरव्वत हो जानम

शिकवा ये कितनी दफ़ा कर चुके हम

जाता नहीं दर्द दिल का है भारी

हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम


      #श्वेता🍁

24 comments:

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    1. जी सादर आभार आपका रंगराज जी।आपकी उपस्थिति और सराहना से अति प्रसन्नता हुयी।

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  2. उम्दा गज़ल स्वेता जी.आप की लेखनी ने इश्क के इकरार को ज़िंदगी अता कर दी है. सादर

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    1. बहुत बहुत आभार एवं तहेदिल से शुक्रिया आपका अपर्णा जी।

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  3. सरलता का कोई विकल्प नहीं।
    ग़ज़ल इतने सहज शब्दों में जब आकार लेती है तो वाचक/ श्रोता से सीधा संवाद करती है दूसरे शब्दों में कहें तो आम जन को पूरी तरह समझ आती है।
    ऐसी ग़ज़ल समूह को प्रभावित करती है और लोकप्रिय हो जाती है।
    हो सकता है किसी मंच से सुनने को भी मिले।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं श्वेता जी।
    हिंदी में नुक्ता (क ,ख ,ग,ज ,फ के नीचे रखी जाने वाली बिंदी (.) क़ , ख़ , ग़ , ज़ , फ़ ) के साथ शब्द लिखने पर विवाद है क्योंकि इसका महत्व उर्दू में है किन्तु सही उच्चारण और अर्थ का अनर्थ होने से बचने के लिए मेरे अनुसार नुक्ता लगाया जाना चाहिए।

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    1. यादव जी, आपने सही कहा कि आज तक हिंदी में नुक्ता को नहीं अपनाया है. पर जब उर्दू के शब्दों का प्रयोग हो रहा है तो अर्थ के अनर्थ होने से बचने के लिए नुक्ता जरूरी हो जाता है. आप परिचित होंगे ...कहा जाता है कि उर्दू में नुक्ता के हेरफेर से खुदा जुदा हो जाता है. लिपि आती हो तो लिख कर देखें... इसे सही करार दिया है कई ने.
      सादर.
      अयंगर

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    2. जी रवींद्र जी सर्वप्रथम आपकी सुंदर उत्साहवर्धन करती सराहना भरी प्रतिक्रिया के लिए तहेदिल से बहुत शुक्रिया एवं बहुत बहुत आभार।
      जी सही कहा आपने उर्दू में नुक्ता का बहुत महत्व है आपने ध्यान दिलाया उसके लिए बहुत आभारी है, टाईप करते समय शायद नज़र अदाज़ हो गयी थी एक जगह हम सुधार कर लिये।
      कृपया, अपनी सूक्ष्म दृष्टि सदैव बनाये रखे यही प्रार्थना है आपसे। आपकी शुभकामनओं की सदैव आकांक्षी हूँ।

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  4. आदरणीय रंगराज जी आपकी बातों से सहमत है हम।आशा है आपके ज्ञान का आशीष आगे भी आपके सानिध्य में मिलता रहेगा।कृपया मेरी त्रुटियाँ पर अवश्य ध्यान दें यही प्रार्थना है। हृदय से अति आभार आपका।

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    1. श्वेता जी, आप मुझे पेड़ पर मत टाँगिए. मैं भी आपके बीच का ही एक पाखी हूँ.
      विनम्रता स्वीकारें.
      अयंगर

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    2. जी,रंगराज जी आपकी विनम्रता को नमन।
      आपका हृदय से सदा स्वागत है।

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  5. थोड़े ही शब्द बहुत कुछ बयान कर जाते हैं. सुन्दर.
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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका।

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  6. बड़ी सुन्दरता से आज और कल की परिस्थितियाँ बयान की हैं....खुद में ही लिप्त...प्यारी सी खूबसूरत गजल

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    1. बहुत बहुत आभार आपका शुक्रिया संजय जी।

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  7. प्रेम का रोग कब हकीमों की दवा से दूर हुआ है ...
    हर शेर बेहतरीन है ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपका तहेदिल से शुक्रिया नासवा जी।

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  8. बहुत सुन्दर‎ मनोभाव हैं आपकी गज़ल में श्वेता जी .

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी।

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  9. बहुत सुंदर !!!!!!! मन के कोमल भावों को उकेरती प्यारी सी गज़ल !!!!!!!!!! बहुत शुभकामना आदरणीय श्वेता जी --

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    1. बहुत बहुत आभार आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए रेणु जी।

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  10. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी सस्नेह शुक्रिया आपका।

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  11. जाता नहीं दर्द दिल का है भारी
    हकीमों से कितनी दवा कर चुके हम... क्या बात है
    बहुत बेहतरीन ग़ज़ल
    हर शेर लाजवाब

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    1. बहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका लोकेश जी।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।